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Manipur: मुख्य न्यायाधीश और दोषियों को सज़ा?

तमाम टीवी डिबेट में सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर लांछन लगाने पर तुले हैं। कोई भी इस समस्या की गहराई तक जाता नहीं दिखाई दे रहा

Manipur Violence की फाइल फोटो

Manipur Violence (फाइल फोटो)

Manipur Violence: मशहूर शायर शहाब जाफ़री का एक चर्चित शेर है, “तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िला क्यों लुटा। मुझे रहज़नों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है।” मणिपुर हिंसा को लेकर पिछले कुछ दिनों से देश की सर्वोच्च अदालत भी सरकार से कुछ ऐसे ही सवाल कर रही है। मणिपुर में हुई बर्बरता के चलते पूरा देश शर्मसार है। परंतु इस मामले पर जब भी कोई मणिपुर की सरकार या सत्तारूढ़ दल के नेताओं से सवाल पूछता है तो वे दूसरे राज्यों में हुई महिला अपराधों की घटनाओं या अन्य हिंसा के मामलों कि तुलना करते हैं। ऐसा करके वे असल मुद्दे से ध्यान भटकाने का काम कर रहे हैं।

बीती 3 मई को मणिपुर में आरक्षण के मुद्दे को लेकर जो हिंसा भड़क उठी उसने अब तक 160 से ज्यादा लोगों की जान ली और सैंकड़ों लोगों को बेघर कर दिया है। बीते मंगलवार को जिस तरह देश के मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र सरकार के वकीलों को आड़े हाथों लिया उससे एक बात तो निश्चित है कि सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में ढिलाई बर्दाश्त नहीं करेगा। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के अधिकतर सवालों का जवाब देश के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के पास नहीं था। दो दिन से सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार से जो-जो सवाल पूछे जा रहे थे उनका उत्तर या संबंधित आँकड़े मीडिया के माध्यम से सभी को पता हैं परंतु अफ़सोस की बात है कि सरकार के वकीलों के पास कोई जानकारी नहीं थी।

बीते सोमवार को जब मुख्य न्यायधीश ने मणिपुर की हिंसा की तुलना देश के अन्य शहरों में होने वाली हिंसा से होती देखी तो वे इस बात पर बहुत आक्रोशित हुए। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने जो भी कहा उसे देश भर ने पढ़ा और सुना। न्यायाधीश ने कहा कि, “मणिपुर में जो हुआ उसे हम यह कहकर सही नहीं ठहरा सकते कि ऐसे मामले और प्रदेशों में भी हुए हैं। यह मामला ‘निर्भया’ जैसा नहीं है। वह भी भयानक था। लेकिन यहां यह एक अलग स्थिति है। यहां सांप्रदायिक और जातीय हिंसा प्रभावित क्षेत्र में ऐसी घटनाओं का एक पैटर्न है।”

उल्लेखनीय है कि मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि जिस इलाक़े में यह बर्बरता हुई उस इलाक़े की पुलिस को इस वारदात की कोई जानकारी ही नहीं थी? कितनी ज़ीरो एफ़आईआर फाइल हुई? क्या इन ज़ीरो एफ़आईआरों को संबंधित पुलिस थानों में पहुँचाया गया? न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को सरकार से इस बात का भी जवाब नहीं मिला कि मणिपुर में दर्ज हुई 6000 एफ़आईआर में किस अपराध पर कितनी एफ़आईआर दर्ज हुई हैं? हर बात पर सॉलिसिटर जनरल का जवाब था कि इसकी जानकारी प्राप्त करनी पड़ेगी। इन सभी जवाबों से तंग आकर ही मणिपुर के डीजीपी को तालाब किया गया। आने वाली 7 अगस्त को मणिपुर के डीजीपी को ना सिर्फ़ कोर्ट में मौजूद रहना होगा बल्कि सभी सवालों के जवाब भी साथ लाने होंगे और कोर्ट में पूछे जाने वाले सवालों का भी जवाब देना होगा।

तमाम टीवी डिबेट में सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर लांछन लगाने पर तुले हैं। कोई भी इस समस्या की गहराई तक जाता नहीं दिखाई दे रहा। एनसीआरबी व बीपीआरडी की पूर्व महानिदेशक आईपीएस मीरा चड्ढा बोरवांकर का कहना है कि, इन सभी 6000 एफ़आईआर को यदि 10-10 कर पुलिस अधिकारियों के बीच बाँट दिया जाए तो इसके लिये न सिर्फ़ 600 जाँच अधिकारी चाहिए होंगे बल्कि 600 प्रासीक्यूटर भी चाहिए होंगे। बड़ी संख्या में टेक्निकल अधिकारी भी चाहिए होंगे जो इस बात की पुष्टि करेंगे कि मोबाइल की लोकेशन के आधार पर वहाँ कौन-कौन मौजूद था। मौक़े का पंचनामा करने के लिए कई जाँच टीमों की ज़रूरत होगी, जिनमें कई फॉरेंसिक अधिकारी भी शामिल होंगे, जो अपराध की कई बारीकियों की जाँच भी करेंगे। एफ़आईआर की इतनी बड़ी संख्या को झेलने के लिए बड़ी संख्या में स्पेशल अदालतों की भी आवश्यकता होगी, जो इन मामलों की सुनवाई मणिपुर के बाहर करेंगी। सोचने वाली बात यह है कि जो भी दल मणिपुर पर राजनीति कर रहे हैं क्या उनके पास इस बात का उत्तर है कि इतनी बड़ी संख्या में दर्ज हुई एफ़आईआर को सही मुक़ाम पर ले जाने के लिए क्या केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार के पास इतनी बड़ी फ़ोर्स है? अगर नहीं है तो प्रश्न उठता है कि इन एफ़आईआर पर निर्णय कब तक आएगा? दोषियों को सज़ा कब मिलेगी?

सत्ता और विपक्ष के सभी राजनैतिक दल केवल असली मुद्दों से ध्यान भटकाने और एक दूसरे पर लांछन लगाने का काम कर रहे हैं। कोई भी समस्या के हल की तरफ़ जाता नहीं दिखाई दे रहा। किसी भी दल ने ऐसी हिंसा करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा देने की बात नहीं की। ऐसी निर्मम घटनाओं को अंजाम देने वाले दोषियों को ऐसी सज़ा देनी चाहिए जिससे कि मिसाल क़ायम हो और भविष्य में कोई भी ऐसी वारदात को अंजाम देने से पहले कई बार सोचे।

ऐसी वारदातों पर इधर-उधर की बात करने से कोई हल नहीं निकलेगा केवल ये चर्चाएँ ही होती रहेंगी और दोषी खुले आम घूमते रहेंगे। इन्हें सजा देना एक बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में अब देखना यह होगा कि देश की सर्वोच्च अदालत इस मामले में क्या रुख़ अपनाती है? कैसे इन सवालों का हल ढूँढती है? कैसे नाकारा मुख्य मंत्री और उनकी सरकार को उसकी हैसियत दिखाती है? सारे देश और दुनियाँ की निगाहें सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर टिकी हैं।

– भारत एक्सप्रेस

 

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