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सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता फैसलों के संशोधन पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता फैसलों के संशोधन पर विचार करते हुए तीन सवालों पर दलीलें सुनीं, और फैसला सुरक्षित रख लिया. याचिका में अदालतों के हस्तक्षेप का अधिकार मांगने की बात की गई.

Supreme Court

क्या अदालतें मध्यस्थता और सुलह से संबंधित वर्ष 1996 के कानून के प्रावधानों के तहत मध्यस्थता से जुड़े फैसलों की संशोधित कर सकती है? सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. संविधान पीठ में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस संजय कुमार, जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह शामिल थे.

दलील सुनने के बाद फैसला रखा सुरक्षित

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अदालतों को मध्यस्थता निर्णयों में संशोधन करने का अधिकार है. जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि इसे विधायिका पर छोड़ दिया जाना चाहिए. संविधान पीठ ने तीन सवालों पर विचार करते हुए सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. संविधान पीठ को यह तय करना है कि किसी अवार्ड में संशोधन के क्या मायने है? दूसरा यदि हम आंशिक संशोधन स्वीकार करते हैं तो ऐसी शक्तियों की.सीमा क्या होगी? और तीसरा अवार्ड की पृथक्कीकरण का सवाल, जिस पर आम तौर पर पक्षकारों द्वारा सहमति होती है.

मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 के तहत विवाद के निपटारे का एक वैकल्पिक तरीका मध्यस्थता है और यह न्यायाधिकरणों द्वारा दिए गए फैसलों में अदालतों के हस्तक्षेप करने की भूमिका को कम करता है. मामले की सुनवाई के दौरान गायत्री बालासामी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने मध्यस्थता फैसलों को रद्द करने की बड़ी शक्ति है तो यह विभिन्न निर्णयों में साबित हुआ है कि फैसलों को संशोधित करने जैसा छोटा अधिकार स्वतः ही मौजूद है. अरविंद दातार ने यह भी कहा कि धारा 34 में फैसले को रद्द करने का प्रावधान मौजूद है.

-भारत एक्सप्रेस



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