
हाल ही में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के निदेशक की नियुक्ति को लेकर एक बार फिर राजनीतिक हलकों में सरगर्मी तेज हो गई है. सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में इस विषय पर एक उच्चस्तरीय बैठक हुई, जिसमें CBI प्रमुख प्रवीण सूद के कार्यकाल को बढ़ाने पर चर्चा की गई.
सरकार प्रवीण सूद के पक्ष में
सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार वर्तमान CBI डायरेक्टर प्रवीण सूद के कार्यकाल को बढ़ाने के पक्ष में है. सूद को 2023 में इस पद पर नियुक्त किया गया था, और उनका कार्यकाल अब समाप्ति की ओर है. सरकार का मानना है कि उनकी लीडरशिप में एजेंसी ने कई अहम मामलों में प्रगति की है, और संस्थान को स्थिर नेतृत्व की आवश्यकता है.
विपक्ष की असहमति
हालांकि, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इस नियुक्ति प्रक्रिया पर ‘डिसेंट नोट’ (असहमति पत्र) दर्ज कराया है. यह नोट उस समिति की बैठक में दिया गया जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और नेता प्रतिपक्ष शामिल होते हैं. यह समिति ही CBI डायरेक्टर की नियुक्ति या कार्यकाल विस्तार का निर्णय लेती है. राहुल गांधी का यह रुख स्पष्ट करता है कि विपक्ष इस कार्यकाल विस्तार से असहमत है और इसे सत्ता पक्ष की पसंद के अनुरूप निर्णय मान रहा है.
CBI जैसी शीर्ष जांच एजेंसी रही बहस का विषय
CBI जैसी शीर्ष जांच एजेंसी की स्वतंत्रता और निष्पक्षता लंबे समय से बहस का विषय रही है. कार्यकाल विस्तार जैसे फैसलों में राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगातार लगते रहे हैं. ऐसे में विपक्ष की ओर से उठाई गई आपत्तियों से यह मुद्दा और गरमा गया है.
क्या अंतिम निर्णय लेती है समिति?
CBI डायरेक्टर की नियुक्ति न केवल प्रशासनिक फैसला है, बल्कि यह लोकतंत्र और जांच एजेंसियों की निष्पक्षता की परीक्षा भी है. अब देखना होगा कि समिति क्या अंतिम निर्णय लेती है और यह देश की जांच प्रणाली पर क्या प्रभाव है.
-भारत एक्सप्रेस
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