
दिल्ली हाईकोर्ट ने जनता पार्टी द्वारा चुनाव चिह्न (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें केवल मान्यता प्राप्त पंजीकृत राजनीतिक दलों के लिए चुनाव चिह्न आरक्षित करने का प्रावधान था. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि उठाए गए मुद्दे का विभिन्न निर्णयों में निपटारा हो चुका है.
जनता पार्टी ने आदेश को इस आधार पर भेदभावपूर्ण बताते हुए चुनौती दी थी कि किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल को आवंटित चिह्न को उस पार्टी से अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह उसका अभिन्न अंग है. यह दलील दी गई कि जब तक पार्टी भारत के चुनाव आयोग के पास पंजीकृत नहीं हो जाती, तब तक उसे गैर-मान्यता प्राप्त नहीं घोषित किया जा सकता और किसी भी राजनीतिक दल को आवंटित चुनाव चिह्न को किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल से छीना या अस्वीकार नहीं किया जा सकता.
याचिका को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि स्थापित निर्णयों के अनुसार, राजनीतिक दल चुनाव चिह्न को अपनी विशेष संपत्ति नहीं मान सकते और खराब प्रदर्शन के कारण कोई भी दल अपना चिह्न खो सकता है. ईसीआई की ओर से अधिवक्ता सिद्धांत कुमार पेश हुए और कहा कि इस मुद्दे को विभिन्न निर्णयों द्वारा कवर किया गया है, जिसमें सुब्रमण्यम स्वामी बनाम ईसीआई (2008) में सुप्रीम कोर्ट का फैसला और समता पार्टी बनाम ईसीआई (2022) में दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला शामिल है.
पीठ ने कुमार की इस दलील में दम पाया कि यह मुद्दा अब एकीकृत नहीं रह गया है और निर्णयों द्वारा इसका निष्कर्ष निकाला गया है. अदालत ने कहा, “उपर्युक्त के मद्देनजर, आदेश की संवैधानिक वैधता को याचिकाकर्ता की चुनौती को खारिज किया जाता है. याचिका खारिज की जाती है.
“याचिका में कहा गया है कि किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल से चुनाव चिन्ह इस आधार पर नहीं छीना जा सकता है कि वह पार्टी पिछले चुनाव में 6% वैध वोट हासिल नहीं कर सकी, इसलिए वह मान्यता प्राप्त नहीं रह गई है.
याचिका में कहा गया है, “यह वर्गीकरण अपने आप में अप्राकृतिक और विरोधाभासी लगता है कि कैसे एक पंजीकृत राजनीतिक दल इस आधार पर गैर मान्यता प्राप्त दल बन सकता है कि वह पिछले चुनाव में न्यूनतम प्रतिशत वोट हासिल नहीं कर सका.” इसमें कहा गया है कि किसी भी राजनीतिक दल की पहचान और आत्मा उसका नाम और उसका प्रतीक होता है, जिसे किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल को देने से इनकार नहीं किया जा सकता.
“यह याचिकाकर्ता राजनीतिक दल किसान के कंधे पर हल के प्रतीक वाला राष्ट्रीय दल था, लेकिन अब किसान के कंधे पर हल के इस प्रतीक को याचिकाकर्ता राजनीतिक दल से इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया है और छीन लिया गया है कि यह एक पंजीकृत, गैर-मान्यता प्राप्त दल बन गया है और याचिकाकर्ता राजनीतिक दल अपने चुनाव चिह्न के बिना चुनाव लड़ने के लिए बाध्य है और उसे स्वतंत्र प्रतीकों की सूची में से एक प्रतीक चुनने के लिए मजबूर किया गया है,” इसमें कहा गया है.
-भारत एक्सप्रेस
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