सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेटी को अपने माता-पिता से शिक्षा का खर्च प्राप्त करने का वैध अधिकार है. अदालत ने कहा कि माता-पिता को बेटी की शिक्षा के लिए धन देने के वास्ते बाध्य किया जा सकता है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने यह टिप्पणी वैवाहिक विवाद से संबंधित मामले में कहा है. जिसमें अलग रह रहे दंपत्ति की बेटी ने अपनी मां को दिए जा रहे कुल गुजारा भत्ते के एक हिस्से के रूप में अपने पिता द्वारा उसकी पढ़ाई के लिए दिए गए 43 लाख रुपये लेने से इनकार कर दिया.
बेटी को शिक्षा का खर्च लेने का वैध अधिकार
बता दें, दंपत्ति की बेटी आयरलैंड में पढ़ाई कर रही है. कोर्ट ने कहा बेटी होने के नाते उसे अपने माता-पिता से शिक्षा का खर्च प्राप्त करने का अपरिहार्य, कानूनी रूप से लागू करने योग्य और वैध अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि हमारा मानना है कि बेटी को अपनी शिक्षा जारी रखने का मौलिक अधिकार है और इसके लिए माता-पिता को अपने वित्तीय संसाधनों की सीमा के भीतर आवश्यक धनराशि प्रदान करने के लिए बाध्य किया जा सकता है.
कोर्ट ने सुनाया ये निर्णय
कोर्ट ने कहा कि पति और पत्नी दोनों 26 साल से अलग रह रहे हैं. पति के 73 लाख रुपये देने को तैयार हो गया था, जिसमें से 43 लाख रुपये शैक्षणिक योग्यता के लिए और बाकी पैसा पत्नी के लिए थे. कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली शक्तियों का प्रयोग कर आपसी सहमति से तलाक का आदेश देकर दोनों पक्षों का विवाह विच्छेद करते है.
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि दंपत्ति की बेटी ने अपनी गरिमा बनाए रखने के लिए राशि लेने से इनकार कर दिया था और उनसे पैसे वापस लेने को कहा था, लेकिन पिता ने इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा कि बेटी कानूनी तौर पर इस राशि का हकदार है.
-भारत एक्सप्रेस
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