

केरल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी को लेकर राज्यपाल के खिलाफ राज्य सरकार की याचिकाओं को सुनवाई के लिए सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच की समक्ष भेज दिया है. याचिका.में राज्यपाल द्वारा कई विधेयकों पर मंजूरी न दिए जाने के खिलाफ केरल सरकार की ओर से दायर की गई है. मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता वेणुगोपाल ने कहा कि तीन साल से यह विधेयक लंबित है, अगर मामला जस्टिस पारदीवाला की पीठ के समक्ष जा सकता है.
जिसपर सीजेआई ने कहा कि जाहिर है कि आज सुबह ही फैसला (तमिलनाडु के राज्यपाल पर जस्टिस पारदीवाला) सुनाया है. इसलिए लोगों को फैसले में दी गई बातों और निर्देशों के बारे में पता चल जाएगा. वेणुगोपाल ने कहा कि इसलिए आदर्श रूप से इसे जस्टिस पारदीवाला की पीठ के समक्ष जाना चाहिए. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 2023 में केरल राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर तत्कालीन राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के दो साल तक बैठे रहने पर नाराजगी व्यक्त की थी.
याचिका में संशोधन करने की दी थी अनुमति
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह इस बारे में दिशा निर्देश निर्धारित करने पर विचार करेगी कि राज्यपाल कब विधेयकों को राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेज सकते है. कोर्ट ने कहा था कि यह संविधान के प्रति हमारी जवाबदेही के बारे में है और लोग हमसे इसके बारे में पूछते हैं. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार को विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को समय सीमा के अंदर मंजूरी देने या अस्वीकार करने के लिए राज्य के राज्यपालों के लिए दिशा निर्देश जारी करने की मांग वाली अपनी याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी थी.
वही राज्यपाल की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच संचार का कोई न कोई माध्यम खुला होना चाहिए. हम विवादों को सुलझा लेंगे. सरकार का कामकाज चलना चाहिए. दरअसल केरल सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि राज्यपाल का मौजूदा आचरण कानून के शासन और लोकतांत्रिक व्यवस्था सहित हमारे संविधान के मूल सिंद्धान्तों के खिलाफ है. इन विधेयकों के माध्यम से जनता के लिए कल्याणकारी योजनाओं को लागू किया जाना चाहिए.लेकिन राज्यपाल इन्हें रोक कर बैठे हैं.
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-भारत एक्सप्रेस
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