Ram Mandir: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को रामलला मंदिर में श्री राम के बाल स्वरूप लिए प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. इसे लेकर पूरे देश का माहौल राममय हो चुका है. इसी बीच राम मंदिर की कुछ जरूरी बाते बताएंगे, तो चलिए जानते हैं. बेशक वर्तमान समय में अयोध्या में भव्य मंदिर बन रहा हो, मगर अयोध्या में राम जी की पूजा तो बरसों से होती आई है. अयोध्या की राम जन्म भूमि पर पहले भी श्री राम का मंदिर था, उसे तुड़वा कर ही मस्जिद बनवाई गई थी और यह कब हुआ इसका जिक्र इतिहास में है, तो मगर सभी में अलग-अलग मत दिए गए हैं. फिलहाल सत्य यह है कि मस्जिद से पूर्व भी यहां पर मंदिर था और मस्जिद बनने के बाद भी यहां मंदिर था और मस्जिद के टूटने के बाद भी यहां मंदिर था.
बाबरी मस्जिद को लेकर हिंदू-मुस्लिम झगड़े भी इतने हुए हैं कि अब उनकी गणना नहीं की जा सकती है, मगर कहा जाता है कि मस्जिद के अंदर ही हिंदुओं ने कई बार राम के नाम पर हवन-पूजन किया और उसकी दीवारों पर राम-राम भी लिखा. इस तरह से देखा जाए तो श्री राम जी की पूजा अयोध्या में हमेशा होती रही और यह नगरी उनकी जन्मभूमि है इसका प्रतीक सदैव मिलता रहा. मगर पहले के समय में श्री राम की जन्मभूमि पर उनका मंदिर कहां था और उसकी पूजा कैसे होती थी, इस बात को जानने की जिज्ञासा हम सभी के अंदर है. तो चलिए आज हम आपको इसके बारे में बताते हैं.
चबूतरे से शुरू हुई कहानी
वर्ष 1885 में पहली बार निर्मोही अखाड़े के एक सदस्य द्वारा कोर्ट में याचिका दी गई कि मस्जिद में एक चबूतरा है, जो राम जन्मभूमि का प्रतीक है और यहां पर राम मंदिर बनना चाहिए. पहले सभी भी बहुत बार अलग-अलग जरियों से हिंदुओं ने इस बात को साबित करने की कोशिश की थी मस्जिद ही उनके प्रभु श्री राम की जन्मभूमि है और वहां पर पहले एक भव्य मंदिर था जिसे तोड़ कर वहां मस्जिद बनाई गई है.
खैर इस चबूतरे पर कोर्ट ने यह कह कर मंदिर बनाने से मना कर दिया था कि मस्जिद और चबूतरा दोनों ही सटे हुए है और इससे दो अलग-अलग धर्मों की आस्था जुड़ी हुई है. हिंदू-मुस्लिम झगड़ों के डर से यहां पर तब मंदिर नहीं बनने दिया गया था. यह लड़ाई खत्म नहीं हुई और वक्त बीतता चला गया वर्ष 1948 में अचानक ही मस्जिद के ढांचे के अंदर श्री राम जी की मूर्ति पाई गई और हिंदुओं ने कहा कि यहां प्रभु अपने आप ही प्रकट हुए हैं और यही श्री राम जी की जन्मभूमि है.
किसने बनवाया था अयोध्या में पहला मंदिर
ऐसा कहा जाता है कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य सिंह ने सबसे पहले अयोध्या के धरती में चमत्कार देखा और यहां पर श्रीराम जी के मंदिर का निर्माण कराया. इस मंदिर को मुगलों के राज्य में तुड़वा दिया गया. हिंदुओं की धार्मिक आस्था को ठेस तो पहुंची थी, मगर अपने रामलाल को प्रेम करना और उनकी सेवा करना उन्होंने नहीं छोड़ा और मस्जिद से सटे एक चबूतरे पर अपने श्री राम की पूजा करते रहे. यह वहीं चबूतरा था, जहां 1885 पर मंदिर बनवाने की बाकी गई थी, मगर मंदिर बन नहीं पाया था. यह चबूतरा मस्जिद के बाहरी ढांचे में एक गुंबद के नीचे था.
वहीं पर कई वर्षों तक चबूतरे के पास से अवतरित हुई मूर्ति की पूजा होती रही. मगर 6 दिसंबर 1992 को भड़के दंगों ने यह स्थान भी रामलाल से छीन लिया और फिर वहीं पास में ही एक स्थान पर श्री राम जी की पुरानी प्रतिमा को ले जाया गया और उनके सेवकों ने वहीं एक तंबू गाड़ कर उनकी रखवाली की. यही पर श्री राम की आरती होती थी और यही उन्हें भोग लगाया जाता था. 1885 से इसी चबूतरे को राम जन्म भूमि माना गया था.
अब कहां हैं श्री राम की पुरानी प्रतिमा?
मीडिया इंटरेक्शन में श्री राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास पहले ही बता चुके हैं कि रामलला की पुरानी मूर्ति अस्थायी मंदिर में है और उसे भी नए मंदिर में नई मूर्ति के साथ रखा जाएगा और उसकी पूजा की जाएगी. आचार्य यह भी बता चुके हैं कि पुरानी मूर्ति काफी छोटी है और इसके दर्शन करने में भक्तों को दिक्कत होगी इसलिए प्रतीक स्वरूप नई मूर्ति रखी जा रही है. प्राण प्रतिष्ठा के बाद दोनों ही मूर्तियों के दर्शन एक साथ गर्भ गृह के अंदर होंगे.