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Sachin Nag: अंग्रेजों से बचने के लिए गंगा में लगाई छलांग और बन गए भारत के सबसे बड़े तैराक, देश के लिए जीता पहला एशियाई खेल स्वर्ण पदक

तैराकी में भारत को पहला गोल्ड मेडल दिलाने वाले सचिन नाग का सफर संयोग, संघर्ष और साहस की कहानी है. 1930 में गंगा में छलांग से शुरू हुआ यह सफर एशियन गेम्स तक पहुंचा.

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Sachin Nag: तैराकी भारतीय समाज का प्राचीन समय से अभिन्न अंग रहा है. लेकिन, इसे खेल के रूप में देश में लोकप्रिय करने में सचिन नाग का नाम प्रमुखता से लिया जाता है.

एशियन गेम्स में तैराकी में गोल्ड जीतने वाले सचिन नाग एकमात्र भारतीय तैराक हैं.

अंग्रेजों से बचने के लिए गंगा में लगाई थी छलांग

सचिन नाग का जन्म 5 जुलाई 1920 को वाराणसी में हुआ था. गंगा नदी के किनारे बसे वाराणसी में जन्म की वजह से तैराकी के प्रति रुझान तो था, लेकिन इस खेल में आना उनके लिए बस संयोग था.

एक रिपोर्ट के मुताबिक 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान वाराणसी के गंगा घाट पर एक सार्वजनिक रैली थी. इस रैली में 10 साल के सचिन भी शामिल थे.

ब्रिटिश अधिकारियों ने जब भीड़ पर लाठीचार्ज शुरू किया, तो 10 साल के सचिन खुद को बचाने के लिए नदी में कूद गए और तेजी से तैरने लगे.

संयोग से उस समय नदी में तैराकी प्रतियोगिता चल रही थी. सचिन तैराकों की कतार में थे. 10 किलोमीटर की प्रतियोगिता जब समाप्त हुई तो सचिन तीसरे स्थान पर आए.

यह एक ऐसे तैराक के करियर की शुरुआत थी जिसने आगे चलकर देश का नाम रोशन करना था.

स्थानीय तैराकी प्रतियोगिताओं में लिया हिस्सा

1930 से 1936 के बीच सचिन नाग ने अनेक स्थानीय तैराकी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और शीर्ष दो में अपना स्थान बनाते रहे. उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर मशहूर तैराकी कोच जामिनी दास ने उन्हें कोलकाता बुलाया और उच्च स्तर पर प्रशिक्षण देना शुरू किया.

बंगाल के हाटखोला क्लब की ओर से सचिन ने राज्य चैंपियनशिप में भाग लेना शुरू किया. साल 1938 में 100 मीटर और 400 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी में जीत हासिल की.

1939 में 100 मीटर फ्रीस्टाइल के राष्ट्रीय रिकॉर्ड की बराबरी की और 200 मीटर फ्रीस्टाइल स्पर्धा में नया रिकॉर्ड बनाया.

1940 में, नाग ने साथी तैराक दिलीप मित्रा द्वारा बनाए गए 100 मीटर फ्रीस्टाइल रिकॉर्ड को तोड़ा. वह लगातार 9 साल राज्य स्तर पर 100 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी प्रतियोगिता के विजेता रहे.

डॉक्टरों ने दी थी तैराकी से दूर रहने की सलाह

सचिन नाग 1948 ओलंपिक में भाग लेना चाहते थे, लेकिन 1947 में उन्हें प्रशिक्षण से लौटते समय गोली लग गई. डॉक्टर्स ने अगले दो साल तक तैराकी से दूर रहने को कहा.

नाग ओलंपिक जाने का मौका खोना नहीं चाहते थे, इसलिए 6 महीने की कड़ी मेहनत के बाद वह तैयार हो गए. हालांकि ओलंपिक के लिए फंड जुटाना उनके लिए मुश्किल था, उन्होंने जगह-जगह घूमते हुए धन जुटाया. उस समय के प्रमुख

गायक हेमंत मुखोपाध्याय ने एक कार्यक्रम का आयोजन कर उनके लिए धन जुटाया. इसकी बदौलत वह 1948 ओलंपिक में शामिल हुए और 100 मीटर फ्रीस्टाइल में छठा स्थान प्राप्त किया.

एशियाई खेलों ने बदल दी जिंदगी

सचिन नाग की जिंदगी का सबसे अहम दिन 8 मार्च 1951 में आया. नई दिल्ली में आयोजित एशियाई खेल में उन्होंने 100 मीटर फ्रीस्टाइल में स्वर्ण पदक जीता.

दर्शक दीर्घा में उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी मौजूद थे. नेहरू नाग के प्रदर्शन से बेहद खुश हुए. उन्होंने उसी समय नाग को गले लगाया और अपने पॉकेट से गुलाब का फूल निकालकर उन्हें दिया.

1951 एशियाई खेल में नाग ने 4×100 मीटर फ्रीस्टाइल रिले और 3×100 मीटर फ्रीस्टाइल रिले में कांस्य पदक भी जीता था. सचिन 1952 ओलंपिक में भी भारतीय टीम का हिस्सा रहे थे.

इतनी सफलता के बाद भी रहे परेशान

एक सफल तैराक होने और देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पदक जीतने के बाद भी सचिन नाग जिंदगी भर वित्तीय परेशानी से जूझते रहे. 19 अगस्त 1987 को 67 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.

सचिन को उनके निधन के 36 साल बाद 2020 में केंद्र सरकार ने ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया.


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-भारत एक्सप्रेस



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