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वक्फ बोर्ड के इस दावे से फिर मचा बवाल, वाराणसी के 115 साल पुराने कॉलेज को बताया Waqf Board की संपत्ति

कॉलेज के प्रिंसिपल, प्रो. डीके सिंह ने बताया कि वक्फ बोर्ड की ओर से यह दावा मजार की भूमि को लेकर किया गया था, जिस पर कॉलेज प्रशासन ने तत्काल जवाब दिया था.

Waqf Board

उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी (फाइल फोटो)

संसद में चल रहे शीतकालीन सत्र में वक्फ संसोशन बिल पर चर्चा हो रही है. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में वक्फ बोर्ड का एक और मामला सामने आया है. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने उदय प्रताप कॉलेज की जमीन पर अपना दावा ठोका है. संपत्ति पर दावा करने का ये मामला छह साल पुराना है, हालांकि संसद में चल रही बहस के बीच एक बार ये मुद्दा फिर से उठ गया है.

छह साल पुराना है मामला

यह विवाद 6 दिसंबर 2018 का है, जब यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सहायक सचिव आले अतीक ने वक्फ एक्ट 1995 के तहत नोटिस जारी किया था. भोजूबीर के वसीम अहमद खान ने रजिस्ट्री पत्र भेजकर दावा किया कि यूपी कॉलेज की भूमि छोटी मस्जिद नवाब टोंक की संपत्ति है, जिसे नवाब साहब ने वक्फ कर दिया था. इसके अनुसार, कॉलेज की भूमि को वक्फ बोर्ड के नियंत्रण में लिया जाना चाहिए. नोटिस का जवाब देते हुए तत्कालीन यूपी कॉलेज शिक्षा समिति के सचिव यूएन सिन्हा ने स्पष्ट किया था कि कॉलेज की स्थापना 1909 में चैरिटेबल एंडाउमेंट एक्ट के तहत हुई थी, और इस संपत्ति पर किसी प्रकार का वक्फ का दावा नहीं किया जा सकता.

कॉलेज प्रशासन ने दिया था जवाब

कॉलेज के प्रिंसिपल, प्रो. डीके सिंह ने बताया कि वक्फ बोर्ड की ओर से यह दावा मजार की भूमि को लेकर किया गया था, जिस पर कॉलेज प्रशासन ने तत्काल जवाब दिया था. उन्होंने यह भी बताया कि कॉलेज की भूमि एंडाउमेंट ट्रस्ट की संपत्ति है, जिसे न तो खरीदा जा सकता है और न ही बेचा जा सकता है. इसके अलावा, किसी भी प्रकार का मालिकाना हक खत्म हो चुका है. उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि यह दावा एक अवांछनीय तत्व द्वारा किया जा रहा है, जो कॉलेज की भूमि को वक्फ बोर्ड की संपत्ति साबित करना चाहता है.

कॉलेज से चुराई जा रही थी बिजली

प्रो. डीके सिंह ने यह भी बताया कि वक्फ बोर्ड द्वारा भेजे गए नोटिस के बाद कोई और पत्राचार नहीं हुआ. हालांकि, कॉलेज प्रशासन ने कुछ समय बाद यह देखा कि मजार में अवैध निर्माण कार्य हो रहे थे, जिस पर पुलिस की मदद से निर्माण सामग्री हटवा दी गई. इसके अलावा, मजार की बिजली भी कटवा दी गई, क्योंकि यह बिजली कॉलेज से अवैध रूप से चुराई जा रही थी.

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वसीम अहमद खान, जिन्होंने इस मामले में दावा किया था, का 2022 में निधन हो गया. खान ने वक्फ बोर्ड को पहले ही सूचित कर दिया था कि उनकी तबियत ठीक नहीं है और वह इस मामले की पैरवी नहीं कर सकते. बताया जाता है कि 1857 के गदर के समय टोंक के नवाब को अंग्रेजों ने नजरबंद किया था, और उनके लोग वाराणसी में बस गए थे. नवाब साहब ने अपनी प्रजा के लिए बड़ी मस्जिद और छोटी मस्जिद का निर्माण कराया था, जिनमें से छोटी मस्जिद यूपी कॉलेज के परिसर में स्थित है.

-भारत एक्सप्रेस



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