राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के दायरे में लाने की मांग वाली याचिका का सुप्रीम कोर्ट ने निपटारा कर दिया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को चुनाव आयोग जाने की सलाह दी है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि अगर चुनाव आयोग ने निर्णय से याचिकाकर्ता सहमत ना हो तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है.
यह याचिका योगमाया एम जी की ओर से दायर की गई थी. याचिका में राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न विरोधी कानून के तहत शामिल करने की मांग की गई थी. याचिका में कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, नेशनल पीपुल्स पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी को पार्टी बनाया गया था.
यौन उत्पीड़न के खिलाफ गठित हो शिकायत निवारण तंत्र
जनहित याचिका में यह भी घोषित करने की मांग की गई थी कि राजनीतिक दल कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम 213 के तहत कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रक्रिया का पालन करने के लिए बाध्य है. साथ ही इसमें विशाखा बनाम राजस्थान मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत निवारण तंत्र गठित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
बता दें कि हालही में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के बाद दिशा निर्देश जारी किया था. सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देश के अनुसार- 31 दिसंबर तक सभी राज्य सरकारें हर जिले में POSH से जुड़े मामलों को देखने के लिए अधिकारी नियुक्त करें, जिला स्तरीय अधिकारी 31 जनवरी 2025 तक लोकल कम्प्लेंट कमिटी बनाए, तहसील स्तर पर भी नोडल अधिकारियों की नियुक्ति हो, नोडल अधिकारियों और लोकल कम्प्लेंट कमिटी का ब्यौरा शीबॉक्स पोर्टल पर डाला जाए.
आंतरिक शिकायत समिति के गठन को लेकर सर्वे
जिलाधिकारी सरकारी और निजी संस्थानों में POSH एक्ट की धारा 26 के तहत आंतरिक शिकायत समिति के गठन को लेकर सर्वे करें और हर सरकारी दफ्तर में अनिवार्य रूप से ICC का गठन हो. कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 को संक्षेप में POSH एक्ट कहा जाता है.
इस कानून का उद्देश्य कामकाजी महिलाओं के लिए उनके कार्यालय में सुरक्षित माहौल बनाना है. इस कानून में किसी भी तरह के यौन उत्पीड़न को लेकर महिला कर्मचारियों की शिकायत सुनने के लिए हर दफ्तर में इंटरनल कम्प्लेंट कमेटी का प्रावधान है. इस कमिटी को जांच और कार्रवाई को लेकर व्यापक अधिकार दिए गए हैं. इसके अलावा हर जिले में प्रशासन की भी भूमिका ऐसे मामलों को लेकर तय की गई है.
-भारत एक्सप्रेस
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