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GSI: दुनिया में बढ़ रही है गुलामी, भारत में भी बड़ी आबादी इसका शिकार, वॉक फ्री फाउंडेशन की रिपोर्ट में सनसनीखेज दावे

Walk Free Foundation: रिपोर्ट के मुताबिक, गुलामी में रहने वाले लोगों की संख्या 50 मिलियन तक पहुंच गई है जिसमें पिछले पांच वर्षों में 25% की व्यापक वृद्धि देखी गई है.

GSI

दुनिया में बढ़ रही है गुलामी

The Global Slavery Index: वॉक फ्री फाउंडेशन की हाल ही में एक नयी रिपोर्ट, वैश्विक दासता सूचकांक (The Global Slavery Index) 2023 सामने आयी है. जो वैश्विक स्तर पर आधुनिक गुलामी के बढ़ते प्रचलन पर प्रकाश डालती है. रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसी स्थितियों में रहने वाले लोगों की संख्या 50 मिलियन तक पहुंच गई है जिसमें पिछले पांच वर्षों में 25% की व्यापक वृद्धि देखी गई है. रिपोर्ट उस महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालती है जो G20 देशों ने अपनी व्यापार गतिविधियों और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के माध्यम से इस संकट को बढ़ाने में निभाई है. भारत, चीन, रूस, इंडोनेशिया, तुर्किये और अमेरिका उन शीर्ष G20 देशों में शामिल हैं जहां सबसे अधिक संख्या में बंधुआ मज़दूर हैं.

ऑस्ट्रेलियाई मानवाधिकार संगठन वॉक फ्री द्वारा संकलित (compiled) 20 देशों के समूह के छह सदस्यों में आधुनिक गुलामी में रहने वाले लोगों की सबसे बड़ी संख्या है. जो मजबूर श्रम, या जबरन विवाह की वजह से मजबूर हैं. 11 मिलियन के साथ भारत शीर्ष पर है, इसके बाद 5.8 मिलियन के साथ चीन, 1.9 मिलियन के साथ रूस, 1.8 मिलियन के साथ इंडोनेशिया, 1.3 मिलियन के साथ तुर्की और 1.1 मिलियन के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका है.

‘इस रैंकिग का उद्देश्य वास्तविकता को दिखान है’

1930 के दशक में पहली संप्रभु क्रेडिट रेटिंग (sovereign credit rating) की उपस्थिति से अब विभिन्न प्रदर्शन संकेतकों के लिए रैंकिंग की अधिकता है. गुणों, गतिविधियों, नीतियों के लिए राज्यों की रैंकिंग, ‘खुशी’ से लेकर ‘लोकतंत्र’ तक सब कुछ मापने के लिए उपयोग की जा रही है. इस तरह के ‘निष्पादन’ संकेतक हाल ही में बढ़े हैं और लगभग विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए एक व्यापक प्रकार के सामाजिक दबाव के रूप में कार्य करने का प्रयास करते हैं. इस रैंकिग का उद्देश्य एक जटिल वास्तविकता को सरल तरीके से दिखाना है.

एक दशक से पेश कर रहा अपनी रिपोर्ट

वॉक फ्री फाउंडेशन पिछले एक दशक से अधिक समय से अपने वैश्विक दासता सूचकांक (GSI) रिपोर्ट के साथ आ रहा है, लेकिन इसके निष्कर्ष विवाद से आजादी नहीं हैं. सामाजिक समावेशन में एक लेख के अनुसार ‘जीएसआई का उद्देश्य अन्य उद्देश्यों के साथ-साथ दुनिया भर में गुलामी के रूपों, आकार और दायरे के साथ-साथ अलग-अलग देशों की ताकत और कमजोरियों को पहचानना है. जीएसआई के तरीकों का विश्लेषण महत्वपूर्ण कमजोरियों को उजागर करता है और इसकी पुनरावृत्ति और वैधता पर सवाल उठाता है.

– भारत एक्सप्रेस

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