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पराक्रम दिवस पर जानिए नेताजी की मौत का रहस्य, हादसे के बाद भी जीवित थे!

Netaji Subhash Chandra Bose Death Mystery: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती पर जानिए हादसे वाले दिन नेताजी ने क्या किया. हादसे के बाद भी वे जीवित कैसे बचे?

Netaji Subhash Chandra Bose Death Mystery

नेताजी सुभाष की आखिरी तस्वीर. 17 अगस्त को साइगाॅथ मे प्लेन से उतरते हुए. (Pic Credit- Netaji Subhash Research)

Netaji Subhash Chandra Bose Death Mystery: आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जंयती है. भारत सरकार ने 2021 से इस दिन को पराक्रम दिवस दिवस के रूप में मनाना शुरू किया. इसके बाद से ही 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत सरकार ने 23 जनवरी 2016 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 100 से अधिक सीक्रेट फाइलें सार्वजनिक की थीं. उनकी मृत्यु 23 अगस्त 1945 को एक प्लेन हादसे में हो गई. हालांकि उनकी मौत अभी भी एक रहस्य बनी हुई है. कई रिपोर्ट्स में उन्हें 1945 के बाद भी जीवित बताया गया. हालांकि इन रिपोर्ट्स की पुष्टि किसी ने नहीं की.

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आपको बता दें कि सुभाष चंद्र बोस के निधन पर दुनियाभर की 10 से अधिक कमेटियों ने जांच की थी. भारत में तीन से अधिक कमेटियां इस पर बनी. लेकिन कमेटियों का निष्कर्ष यही था कि नेताजी की मौत 1945 में हुए एक विमान हादसे में हुई थीं. नेताजी बोस का जन्म 1897 में ओडिशा के कटक में हुआ था. उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस के लिए हुई परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया था. उन्होंने देश को अंगेजों को आजादी दिलाने के लिए आराम की नौकरी छोड़ अपना जीवन देश को समर्पित कर दिया था. आज पराक्रम दिवस पर जानते हैं उनकी मौत से जुड़े रहस्य.

बॉम्बर प्लेन मित्सुबिशी Ki-21, जिसमें सवार होकर बोस मंचूरिया के लिए रवाना हुए थे। इसी प्लेन क्रैश में उनकी मृत्यु हुई थी।

इसी प्लेन में सवार थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस.

17 अगस्त को क्या हुआ था?

द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हालत लगातार खराब होती जा रही थी ऐसे में नेताजी ने जापान छोड़ना उचित समझा. ऐसे में वह जापान से रूस जाना चाहते थे. 17 अगस्त की सुबह करीब 6 बजे बोस बैंकाॅक एयरपोर्ट से नेताजी और उनकी टीम कुछ जापानी अधिकारियों के साथ साइगाॅन के लिए रवाना हुई. नेताजी के फंड्स से भरे 2 बड़े सूटकेस भी थे. इन सूटकेस में सोना-चांदी और पैसे थे. जो उन्हें जनता से मिलता था. क्योंकि जनता उनकी भाषणों से बड़ी प्रभावित थी. साइगाॅन पहुंचने के बाद उन्होंने जापानी सेना के अधिकारियों से मुलाकात की. यहां उन्होंने उनसे सोवियत संघ जाने के लिए एक प्लेन की व्यवस्था करने को कहा.

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18 अगस्त की रात आखिरी थी

17 अगस्त की दोपहर को टोक्यो से मास्को के लिए उड़ान भरने वाला प्लेन मंचूरिया होकर जाने वाला था. बोस यहीं उतरकर अंग्रेजों से लोहा लेना चाहते थे. 17 अगस्त की शाम को बोस के विमान ने साइगाॅन के लिए उड़ान भरी. रात्रि विश्राम के लिए उनका प्लेन वियतनाम में रुका. 18 अगस्त की सुबह प्लेन ने फिर उड़ान भरी ताइवान पहुंचा. वहां प्लेन 2 घंटे से अधिक रुका. दोपहर को विमान ने एक बार फिर मंचूरिया के लिए उड़ान भरी. जैसे ही विमान हवा में उठा 20-30 मीटर की ऊंचाई पर इंजन में एक धमाके की आवाज आईं और उसमें आग लग गई. विमान जैसे ही रनवे पर गिरा दो हिस्सों में टूट गया.

जापानी रेडियो ने की मौत की घोषणा

इसके बाद नेताजी के कपड़ों और उनके शरीर में आग लग गई. नेताजी का शरीर और चेहरा आग से झुलस गया. इलाज के लिए उन्हें नजदीकी सैन्य हाॅस्पिटल में ले जाया गया. जब उन्हें हाॅस्पिटल ले जाया गया तब भी वे होश में थे. नेताजी ने 18 अगस्त की रात 9-10 बजे के बीच अंतिम सांस ली. 20 अगस्त को ताइवान में नेताजी का अंतिम संस्कार किया गया. उनकी मौत के 6 दिन बाद जापानी रेडियो ने आधिकारिक घोषणा की.

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