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बलिदान में पेश करने के बजाय अपने सिर का प्रयोग करें

कोई दूसरे को राज्य नहीं देता. यह अपनी ताकत से लिया जाता है. यह जान लो कि बिना शस्त्र के मनुष्य विजय प्राप्त नहीं कर सकता. अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हथियार को पकड़ो.

कोई दूसरे को राज्य नहीं देता. यह अपनी ताकत से लिया जाता है. यह जान लो कि बिना शस्त्र के मनुष्य विजय प्राप्त नहीं कर सकता. अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हथियार को पकड़ो. हम अक्सर गुरु गोबिंद सिंह जी की इन पंक्तियों को सुनते हैं, कुछ गुमनाम कवि उन्हें गुरु की शिक्षाओं के रूप में फैलाते हैं. बहुत से लोग अज्ञानतावश इन पंक्तियों को सत्य मान लेते हैं और ऐसी मानसिकता विकसित कर लेते हैं कि कोई किसी को शक्ति नहीं देता, बल्कि उसे बलपूर्वक ग्रहण करना पड़ता है. वे इस भ्रामक धारणा का प्रचार करते हैं कि शस्त्र के बिना राज्य प्राप्त नहीं किया जा सकता.

मेरे विचार से सिक्ख प्रचारकों, नेताओं और राजनीतिक विद्वानों का यह कर्तव्य है कि वे युवाओं में बुनियादी शिक्षा के प्रति प्रबोधन की दिशा में प्रयास करें ताकि आत्मबल के मार्ग में लापरवाही की प्रवृत्ति को रोका जा सके और लोकतान्त्रिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जा सकता है. कट्टर धार्मिक सोच के बजाय धर्मनिरपेक्ष सोच को अपनाने का रास्ता चुना जा सकता है. पंजाब में न केवल सिख रहते हैं बल्कि सिखों से ज्यादा समुदाय हैं. इसलिए सांप्रदायिक सोच के बजाय सिख समुदाय को अपना गौरवपूर्ण सिख दर्शन देना चाहिए. साथ ही, हमें जुड़े रहना चाहिए ताकि हम दुनिया को बाबा नानक की लोककथाओं का मार्ग बता सकें. गुरुओं की विचारधारा सर्व की भलाई की विचारधारा है. यहां तक ​​कि जो लंगर हम ले जा रहे हैं, वे भी हथियारों को बढ़ावा देने वाली संस्कृति के कारण हमारी छवि नहीं सुधार रहे हैं.

इसलिए बिना उपयोग किए सिर देना अर्थहीन है. 1846 में हेड्स भी दिए गए, लेकिन इस्तेमाल नहीं किए गए. खालसा साम्राज्य उस समय दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी शक्ति था जहां एक रुपया 12 डॉलर के बराबर था और दुनिया की अर्थव्यवस्था का 30 प्रतिशत हिस्सा था.

1920-25 में भी उन्होंने अपना सिर देकर गुरु घर को महंतों से मुक्त कराया, लेकिन उन्होंने सिर का इस्तेमाल नहीं किया. इस कारण सिक्ख अपनी संप्रभुता प्राप्त नहीं कर सके और गुरमत सिद्धांत को स्वीकार नहीं कर सके तथा सिक्ख राज्य की अपनी अवधारणा को भी छोड़ दिया. साथ ही 1946 में उन्होंने अपने सिर का इस्तेमाल नहीं किया और अपनी मातृभूमि की मांग छोड़ दी और उसके बाद वे मातृभूमि की मुक्ति की दिशा में कदम नहीं उठा सके. बौद्धिक मुक्ति सुनिश्चित करने के लिए हमें ज्ञान आधारित आधुनिकता की मानसिकता को अपनाना होगा और मध्यकालीन सोच को खारिज करना होगा.

सिख गुरुओं की शिक्षाओं से जुड़कर हम गुरु नानक के समावेशी और सार्वभौमिक संदेश को बढ़ावा दे सकते हैं. गुरुओं की शिक्षा सभी के कल्याण पर आधारित है. सिख समुदाय को सार्वभौमिक कल्याण की अपनी समझ को केवल लंगर (मुफ्त भोजन) प्रदान करने तक सीमित नहीं रखना चाहिए। हथियार केंद्रित संस्कृति को बढ़ावा देने से हमारे समाज में लंगर की विकृत समझ पैदा हुई है.

यह लेखक GURCHARAN SINGH का खुद का विचार है.

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