

अयोध्या में मंदिर निर्माण के बाद विकास कार्यों के लिए किए गए भूमि अधिग्रहण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. यह याचिका वकील नरेंद्र मिश्रा के माध्यम से दाखिल की गई, जिसमें केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को पक्षकार बनाया गया है.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि यूपी सरकार ने 2021, 2022 और 2023 में भूमि अधिग्रहण के दौरान अनियमितताएं की हैं. इसमें अधिग्रहण प्रक्रिया की जांच और इसमें हस्तक्षेप करने की मांग की गई है. साथ ही, भूमि अधिग्रहण के लिए जारी की गई अधिसूचना को रद्द करने की भी अपील की गई है.
भूमि अधिग्रहण में नियमों के उल्लंघन का आरोप
याचिकाकर्ताओं ने याचिका दायर करने से पहले केंद्र सरकार को ज्ञापन सौंपा था. याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार ने सस्ते दामों पर खेतिहर जमीन अधिग्रहित की, फिर लैंड यूज को बदलकर उसे व्यावसायिक भूमि घोषित कर दिया और महंगे दामों पर बेचा, जिससे सरकार ने भारी मुनाफा कमाया.
इसके अलावा, भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के उल्लंघन का भी आरोप लगाया गया है. याचिका में कहा गया है कि अधिसूचना जारी करने में भी इस कानून का पालन नहीं किया गया.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार पर लगाया जुर्माना
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अन्य भूमि अधिग्रहण मामले में ढाई साल तक जवाब दाखिल न करने पर राज्य सरकार पर 15,000 रुपये का जुर्माना लगाया था.
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 113 के तहत किसी भी विवाद की स्थिति में केंद्र सरकार का आदेश मान्य होगा. सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी होने की तारीख से ही मुआवजा दिया जाएगा.
याचिकाकर्ता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत मुआवजा देने का निर्देश दिया है. केंद्र सरकार ने भी अदालत में ऐसा आश्वासन दिया था, लेकिन अब वह अपने वादे से पीछे हट रही है.
ये भी पढ़ें- दिल्ली हाई कोर्ट से सोमनाथ भारती को बड़ा झटका, बांसुरी स्वराज के खिलाफ याचिका की खारिज
-भारत एक्सप्रेस
इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.