
दिल्ली हाईकोर्ट ने उस महिला को पास्को मामले में आरोपमुक्त कर दिया जिसपर अपनी बेटी के साथ यौन उत्पीड़न करने वाले पिता व उसके दो फुफेरे भाईयों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं कराने का आरोप था. न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि महिला खुद अपने पति से शारीरिक प्रताड़ना की शिकार है. उस दशा में उसके खिलाफ मुकदमा चलाना उसे और दंडित करने के समान होगा. उन्होंने यह कहते हुए महिला के खिलाफ आरोप तय करने वाले निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया.
न्यायमूर्ति ने कहा कि मुख्य रूप से एक बच्चे को सुरक्षा, विास और भावनात्मक ताकत उसके माता-पिता से मिलती है. लेकिन जब मां खुद अपने पति से डरकर, प्रताड़ित एवं शारीरिक हिंसा के बीच रह रही हो तो उसकी रक्षा करने, कार्य करने या सच्चाई को समझने की क्षमता भी बहुत कम हो जाती है.
पुलिस की कार्यवाही और आरोप
एक अदालत को इन सब परिस्थितियों में एक महिला की असहाय स्थिति को समझना जरूरी हो जाता है. तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए महिला के खिलाफ आरोप तय करने से न केवल उसे काफी नुकसान होगा, बल्कि नाबालिग पीड़िता को भी नुकसान होगा. जबकि वह अपनी मां पर ही भरण-पोषण के लिए निर्भर है.
यह मामला तब सामने आया जब महिला ने अपने ससुराल वालों के खिलाफ शारीरिक उत्पीड़न की शिकायत की. उसी दिन उसने दिल्ली महिला आयोग के हेल्पलाइन पर फोन करके अपने पति और अपनी ननद के दो बेटों के खिलाफ अपनी 10 वर्षीय बेटी पर यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराई.
पुलिस ने आरोपी के खिलाफ पास्को के तहत मामला दर्ज किया. साथ ही महिला पर भी पास्को की धारा 21 के तहत आरोप पत्र दाखिल कर दिया, क्योंकि उसने बेटी के यौन उत्पीड़न से संबंधित शिकायत पुलिस में दर्ज नहीं कराई थी. हाईकोर्ट ने मामले पर विचार करने के बाद मां के खिलाफ कार्यवाही को रद्द कर दिया, लेकिन अन्य आरोपियों के खिलाफ मामला जारी रखने का आदेश दिया.
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-भारत एक्सप्रेस
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