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दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकारी अधिकारियों के अवैध कब्जे को असंवैधानिक बताया, संपत्ति के अधिकारों का संरक्षण किया जरूरी

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारियों का निजी संपत्ति पर लंबे समय तक अवैध कब्जा असंवैधानिक है. कोर्ट ने सरकारी कार्रवाई को अनुच्छेद 300 ए का उल्लंघन बताया और मुआवजे का आदेश दिया.

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दिल्ली हाईकोर्ट.

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में आदेश देते हुए कहा कि सरकारी अधिकारियों का किसी निजी संपत्ति पर लंबे समय तक अवैध कब्जा करना असंवैधानिक है. सरकार की शक्ति किसी के संपत्ति के अधिकारों को समाप्त नहीं कर सकता.

जस्टिस पुरुषेंद्र कौरव ने अपने आदेश में कहा कि कार्यकारी अधिकारी का अधिकार संविधान के दायरे में होना चाहिए. क्योंकि जब अधिकारों बकम रक्षक उल्लंघनकर्ता बन जाता है तो कानून का मूल ढांचा खतरे में पड़ जाता है. न्याय, समानता और अच्छे विवेक के सिद्धांतों से शासित लोकतंत्र में स्वामित्व जैसे कानूनी अधिकारों का संरक्षण राज्य की प्रतिबद्धता होनी चाहिए.

एकपक्षीय जब्ती आदेश को कोर्ट ने बताया गैरकानूनी

कोर्ट ने कहा कि राज्य की शक्तियां पूर्ण या निरपेक्ष नहीं है, बल्कि संवैधानिक और वैधानिक सीमाओं से सीमित है. कोई भी कार्यकारी या विधायी कार्रवाई जो किसी नागरिक की संपत्ति को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के छीनने का प्रयास करती है, तो उससे अनुच्छेद 300 ए का उल्लंघन होगा. सार्वजनिक हित और कानून के लिए यह आवश्यक है कि राज्य को किसी अन्य व्यक्ति की तरह जवाबदेही ठहराया जाए, जब वह किसी नागरिक को गैर कानूनी तरीके से संपत्ति से वंचित किया जाता है या लापरवाही से चोट पहुचाया जाता है. एक संपत्ति का मालिक अवैध कब्जे की दशा में मुआवजे का दावा करने का हकदार है.

अदालत ने यह कहते हुए एक व्यक्ति की वर्ष 1999 से 2020 तक के सरकारी कब्जे को गैरकानूनी घोषित कर दिया. साथ ही किराया चुकाए बिना 2 जुलाई 2020 तक संपत्ति पर कब्जा बनाए रखने के लिए सरकार की निंदा की है. उन्होंने वादी के दावे को.स्वीकार कर लिया और तत्कालीन प्रचलित बाजार दरों के आधार पर छह फीसदी ब्याज के साथ 1,7679550 रुपए देने को कहा. बता दें कि आपातकाल के समय.सरकार ने वादी के फ्लैट पर तस्करों और विदेशी मुद्रा हेरफेर (संपत्ति जब्ती) अधिनियम 1976 के तहत कब्जा कर लिया था.

बिना किराया चुकाए कब्जा बनाए रखने पर फटकार

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि वादी को सुने बिना एकपक्षीय जब्ती आदेश पारित किया गया था. उसने कहा था कि किसी व्यक्ति का अचल संपत्ति एक भौतिक संपत्ति या स्वामित्व की भौतिक अभिव्यक्ति नहीं है. यह आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक पहचान और व्यक्तिगत गरिमा का एक बुनियादी स्तंभ है. संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत राज्य की संप्रभु शक्ति और व्यक्तियों के.स्वामित्व अधिकारों के बीच एक नाजुक संतुलन बनाता है.

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-भारत एक्सप्रेस 



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