
वक्फ संशोधन बिल लोकसभा और राज्यसभा से पास होते ही, इसको असंवैधानिक करार देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का सिलसिला जारी है. कांग्रेस के सांसद मोहम्मद जावेद, ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुस मुस्लिमीन के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, ओखला से आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान के बाद एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स ने भी याचिका दायर की है.
सुप्रीम कोर्ट में अब तक चार याचिकाएं दायर की जा चुकी है. अमानतुल्लाह खान ने अनुच्छेद 32 के तहत यह याचिका दायर की है, जिसमें हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा से पास वक्फ संशोधित बिल के कानूनी वैधता को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि ये बिल मुस्लिम समुदाय के धार्मिक, संस्कृति और संपत्ति के अधिकारों के खिलाफ है. वक्फ बोर्ड को केंद्र सरकार के अधीन लाकर अल्पसंख्यक समुदाय के स्वायत्तता को कमजोर की गई है.
संविधान के अनुच्छेदों के उल्लंघन का आरोप
याचिका में यह भी कहा गया है कि ट्रिब्यूनल के न्यायिक शक्तियों को जिला कलेक्टर को सौंपना गलत है. जबकि असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी याचिका में विधेयक की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है. संसद में भी ओवैसी ने वक्फ बिल का विरोध किया था और प्रतीकात्मक तौर पर इसकी एक कॉपी भी फाड़ दी थी. वही कांग्रेस के सांसद मोहम्मद जावेद ने याचिका दायर कर वक्फ संशोधन विधेयक को मुस्लिम समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला बताते हुए चुनौती दी है.
उन्होंने अपनी याचिका में कहा गया है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 24 (धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता), अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता), अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यक अधिकार) और अनुच्छेद 300 ए (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करता है. याचिका में यह भी कहा गया है कि जब हिंदू और सिख ट्रस्टों को स्व- नियमन की छूट प्राप्त है, तो केवल वक्फ संपत्तियों के मामलों में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ाना असमान और अनुचित है.
जावेद ने इस संशोधन के उस प्रावधान पर भी आपत्ति जाहिर की है, जिसमें कहा गया है कि वक्फ संपत्ति केवल उसी व्यक्ति द्वारा दी जा सकती है, जो कम से कम पांच वर्षों से इस्लामिक प्रैक्टिस कर रहा हो. यह प्रावधान उन लोगों के साथ भेदभाव करता है, जिन्होंने हाल ही में इस्लाम अपनाया है और अपनी संपत्ति वक्फ को देना चाहते है.
‘संपत्ति का प्रबंधन धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता’
इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटार्यड जस्टिस ए. एन मित्तल ने वक्फ बोर्ड को लेकर कहा कि ये सभी याचिकाएं प्री मैच्योर है. क्योंकि राष्ट्रपति का उस बिल पर हस्ताक्षर नही हुआ है और ना ही वह विधेयक गजट में प्रकाशित हुआ है. इस अधिनियम में ऐसा कोई बिंदु नही है, जिसमें अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता हो. वक्फ का मैनेजमेंट एक जमीन का मैनेजमेंट है, एक संपत्ति का मैनेजमेंट है. तो संपत्ति के मैनेजमेंट को धर्म से जोर कर देखना सही नही नही
वही उत्तराखंड हाई कोर्ट से रिटायर्ड जस्टिस लोकपाल सिंह ने कहा कि इनका भी मानना है कि अभी तक वक्फ बोर्ड अधिनियम को लेकर जो भी याचिका दायर की गई है वह प्री मैच्योर है. इस बिल से मुस्लिम समाज के प्रत्येक वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा.
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-भारत एक्सप्रेस
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