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पत्नी की हत्या के दोषी स्वामी श्रद्धानंद की दया याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई दो सप्ताह के लिए टली

सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी श्रद्धानंद की दया याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर केंद्र सरकार को निर्देश लेने का समय दिया. 84 वर्षीय श्रद्धानंद 30 साल से जेल में हैं और उन्होंने राष्ट्रपति से अपनी दया याचिका की समीक्षा में तेजी लाने की मांग की है.

Supreme court

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सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे स्वामी श्रद्धानंद की ओर से दायर दया याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिए टाल दिया है. सीजेआई की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार के वकील को सरकार से निर्देश लेने के लिए 2 सप्ताह का समय दे दिया है. स्वामी श्रद्धानंद ने दिसंबर 2023 में राष्ट्रपति को सौंपी गई अपनी दया याचिका की समीक्षा में तेजी लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.

30 वर्षों से जेल में बिना पैरोल के

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह के बेंच याचिका पर सुनवाई कर रही है. 84 वर्षीय श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा की ओर से पेश वकील वरुण ठाकुर ने कहा कि श्रद्धानंद ने एक भी दिन की पैरोल के बिना 30 साल जेल में बिताए है. इससे पहले भी श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा ने याचिका दायर कर फांसी की सजा की मांग की थी. जिसपर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि आप चाहते हैं कि इसे फांसी में बदल दिया जाए?

फांसी की सजा मांगने पर SC की प्रतिक्रिया

कोर्ट ने कहा था कि किसी भी आरोपी को दोषसिद्धि के आधार पर मौत की सजा मांगने का अधिकार नहीं है. आप अपनी जान नहीं ले सकते, आत्महत्या का प्रयास करना भी एक अपराध है. इसलिए आप यह नहीं कह सकते कि अदालत को मौत देना होगा. कोर्ट उचित सजा देगी. दोषी के वकील ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई सजा आईपीसी की धारा 432 के तहत समय से पहले रिहाई के लिए अर्जी दाखिल करने के श्रद्धानंद के अधिकार को बाधित करती है.

मौत की सजा से उम्रकैद तक का सफर

कोर्ट ने कहा था यह याचिका जीवन पर्यंत आजीवन कारावास की सजा आपको फांसी से बचाने के लिए दी गई थी. बता दें कि मैसूर के पूर्व दिवान सर मिर्जा इस्माइल की पोती, शकीरा ने 21 साल के अपने पति अकबर खलीली को तलाक देने के एक साल बाद 1986 में श्रद्धानंद से शादी की थी. यह अपराध शकीरा की 600 करोड़ रुपये की संपत्ति को हड़पने के लिए किया गया था, जिसे अप्रैल-मई 1991 में किसी समय नशीला पदार्थ देकर जिंदा दफन कर दिया गया था. उसके शरीर को खोद कर निकाला गया था और 30 अप्रैल 1994 को श्रद्धानंद को गिरफ्तार कर लिया गया था. 2000 में एक निचली अदालत ने उसे सजा सुनाई थी. 2005 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने सजा को जारी रखा. उनकी अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने 2098 में मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था.

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-भारत एक्सप्रेस 



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