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संभल में बिना नोटिस बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में टली सुनवाई

उत्तर प्रदेश के संभल में बिना नोटिस दिए बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट एक सप्ताह बाद सुनवाई करेगा. याचिकाकर्ता ने इसे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों का उल्लंघन बताते हुए कहा कि संपत्ति को ध्वस्त करना मौलिक अधिकारों का हनन है.

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उत्तर प्रदेश के संभल में बिना नोटिस दिए बुलडोजर की कार्रवाई के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट एक सप्ताह बाद सुनवाई करेगा. मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मामले में जिरह करने वाले वकील निजी कारणों से कोर्ट में पेश नही हो पाए है. लिहाजा मामले की सुनवाई एक सप्ताह के लिए टाल दिया जाए. जिसके बाद कोर्ट ने सुनवाई के लिए टाल दिया. जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच सुनवाई करेगी. यह याचिका संभल के रहने वाले मोहम्मद घयूर ने दायर की है.

याचिका में कहा गया है कि 10 और 11 जनवरी के बीच बेहजोल रोड़ स्थित तिवारी सराय स्थित उसकी संपत्ति को बिना नोटिस दिए ध्वस्त कर दिया गया है. जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा निर्देशों का उल्लंघन है. 13 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दिशा निर्देश जारी किया था. कोर्ट ने कहा था कि बुलडोजर एक्शन को लेकर कम से कम 15 दिन की मोहलत दी जानी चाहिए. नोडल अधिकारी को15 दिन पहले नोटिस भेजना होगा. कोर्ट ने नोटिस को डिजिटल पोर्टल पर भी डालने को कहा है. कोर्ट ने तीन महीने के भीतर पोर्टल बनाने को कहा है. कोर्ट ने कहा कि कानून की प्रक्रिया का पालन जरूरी है. सत्ता का दुरुपयोग बर्दास्त नही होगा.

बिना नोटिस बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ याचिका

कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि अधिकारी अदालत की तरह काम नही कर सकते हैं. प्रशासन जज नही हो सकता है. किसी की छत छीन लेना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा था कि सिर्फ आरोप के आधार पर किसी के घर को नही तोड़ा जा सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा था कि किसी का घर उसका सपना होता है कि उसका आश्रय कभी न छीने और हर घर का सपना होता है कि उसके पास आश्रय हो. हमारे सामने सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका किसी व्यक्ति का आश्रय छीन सकती है जिसपर अपराध का आरोप है.

मौलिक अधिकारों के हनन का आरोप

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बुलडोजर एक्शन का मनमाना रवैया बर्दास्त नही होगा. अधिकारी मनमाने तरीके से कम नही कर सकते. अगर किसी मामले में आरोपी एक है तो घर तोड़कर पूरे परिवार को सजा क्यों दी जाए? पूरे परिवार से उनका घर नही छीना जा सकता. बता दें कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हुए बुलडोजर की कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दोषी होने के बावजूद उसके घर को नही गिराया जा सकता है.

कोर्ट ने कहा था कि सार्वजनिक सड़को पर, वॉटर बॉडी या रेलवे लाइन की जमीन पर अतिक्रमण से बने मंदिर, मस्जिद या दरगाह है तो उसे जाना होगा. क्योंकि पब्लिक ऑर्डर सर्वोपरि है. वही तीनों राज्य सरकारों की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि बुलडोजर की कार्रवाई से 10 दिन पहले नोटिस जारी किया गया था. एसजी ने कहा था कि यह कहना कि किसी विशेष समुदाय को टारगेट किया जा रहा है, तो यह गलत है.

विशेष समुदाय को टारगेट करने के आरोपों का खंडन

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है. एसजी ने कोर्ट से कहा था कि कोर्ट ने पहले संकेत दिया हुआ है कि बुलडोजर कार्रवाई को लेकर दिशानिर्देश जारी करेगा तो मेरे पास (एसजी तुषार मेहता) कुछ महत्वपूर्ण सुझाव है. एसजी ने कहा था कि अधिकांश चिंताओं पर ध्यान दिया जाएगा. जस्टिस बीआर गवई ने कहा था कि हम स्पष्ट करेंगे कि विध्वंस केवल इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि कोई आरोपी या दोषी है. जस्टिस गवई ने कहा था कि जब मैं बॉम्बे हाईकोर्ट में था तो मैंने खुद फुटपाथों पर अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने का निर्देश दिया था.

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-भारत एक्सप्रेस 



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