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अभिव्यक्ति की आजादी मामले में इमरान प्रतापगढ़ी को ‘सुप्रीम’ राहत, अदालत ने रद्द की FIR

सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संविधान का एक महत्वपूर्ण अधिकार बताया. कोर्ट ने कहा कि विचारों की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.

इमरान प्रतापगढ़ी (फोटो-सोशल मीडिया)

कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमापूर्ण जीवन जीना असंभव है.

कोर्ट ने कहा कि एक स्वस्थ्य लोकतंत्र में किसी व्यक्ति या समूह द्वारा व्यक्त विचारों का जवाब किसी अन्य दृष्टिकोण से दिया जाना चाहिए. भले ही बड़ी संख्या में लोग किसी विचार से असहमत हों, लेकिन विचार प्रकट करने के व्यक्ति के अधिकार का सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए. साहित्य, जिसमें कविता, नाटक, फिल्म, व्यंग्य और कला शामिल हैं, मनुष्य के जीवन को अधिक सार्थक बनाते है.

जस्टिस ओका ने अपने फैसले में कहा कि कोई अपराध नही हुआ. जब आरोप लिखित रूप में हो तो पुलिस अधिकारी को इसे पढ़ना चाहिए, जब अपराध बोले गए या बोले गए शब्दों के बारे में हो.

कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों को बोले गए या लिखे गए शब्द पसंद नहीं आ सकते हैं, फिर भी हमें इसे संरक्षित करने और संवैधानिक सुरक्षा का सम्मान करने की आवश्यकता है. जब पुलिस इसका पालन नही करती है. संवैधानिक न्यायालयों को संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए सबसे आगे रहना चाहिए और मुक्त भाषण सबसे अधिक पोषित अधिकार है.

वही जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने अपने फैसले में कहा कि नागरिक होने के नाते पुलिस अधिकारी अधिकारों की रक्षा करने के लिए बाध्य है. जब धारा 196 बीएनएस के तहत अपराध होता है तो इसे कमजोर दिमाग या उन लोगों के मानकों के अनुसार नहींआंका जा सकता है, जो हमेशा हर आलोचना को अपने ऊपर हमला मानते है.

75 साल बाद भी पुलिस की समझ पर सवाल

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर पर कहा था कि संविधान लागू होने के 75 साल बाद कम से कम पुलिस को अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझनी चाहिए. जस्टिस ओका ने कहा था कि जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात आती है तो इसकी रक्षा की जानी चाहिए.

उन्होंने कहा था कि पुलिस को एफआईआर दर्ज करने से पहले कुछ संवेदनशीलता दिखानी चाहिए. उन्हें (संविधान के अनुच्छेदों को) पढ़ना चाहिए और समझना चाहिए. इमरान प्रतापगढ़ी पर कथित तौर पर भड़काऊ गाना शेयर करने के आरोप में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी.

कोर्ट ने कहा था कि ऐ खून के प्यासे बात सुन कविता वास्तव में अहिंसा का संदेश दे रही है. इसका धर्म से या किसी राष्ट्र विरोधी गतिविधि से कोई लेना देना नहीं है.  आज के समय में रचनात्मकता का कोई सम्मान नहीं है. यदि इसे सामान्य रूप से पढ़े तो कविता यह कहती है कि अन्याय सहना पड़े, तब भी प्रेम से सहन करें. वही गुजरात पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि यह सड़क छाप कविता थी और इसे फैज अहमद फैज जैसे प्रसिद्ध कवि एवं लेखक से संबंधित नहीं माना जा सकता है.

गुजरात पुलिस और सॉलिसिटर जनरल की दलीलें

उन्होंने कहा था कि सांसद के वीडियो संदेश के वजह से ही समस्या पैदा हुई है. राज्य सरकार का दावा था कि कविता को लोग अलग तरह से भी समझ सकते थे. उन्होंने यह भी कहा था कि प्रतापगढ़ी को अपनी सोशल मीडिया टीम के कार्यों की जिम्मेदारी लेनी होगी, क्योंकि वीडियो उनके अकाउंट से पोस्ट किया गया था. दूसरी ओर सांसद इमरान प्रतापगढ़ी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि इमरान प्रतापगढ़ी ने नहीं बल्कि उनकी टीम ने यह वीडियो संदेश साझा किया था.

अभियोजन पक्ष के मुताबिक, जामनगर में एक शादी समारोह में हिस्सा लेने के बाद इमरान प्रतापगढ़ी ने एक वीडियो इंस्टाग्राम पर अपलोड किया था. इसमें बैकग्राउंड में ऐ खून के प्यासे बात सुनो कविता सुनाई दे रही थी. कविता के शब्दों को आपत्तिजनक मानकर इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी.

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-भारत एक्सप्रेस 



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