दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
Centre ordinance: केंद्र सरकार के नए अध्यादेश के बाद एक बार फिर दिल्ली के उपराज्यपाल और आम आदमी पार्टी के बीच टकराव बढ़ जाएगा. इसी के साथ मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर जा सकता है. दरअसल राजधानी में अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने दिल्ली सरकार के पक्ष में सुनाया था, लेकिन अब केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया है. अब एक बार फिर दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार केजरीवाल सरकार की बजाय उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के पास ही रहेंगे.
केंद्र सरकार की ओर से जीएनसीटीडी (GNCTD) बिल में संशोधन कर जारी अध्यादेश में कहा गया है कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, लेकिन विधायिका के साथ. दिल्ली में देश-विदेश से जुड़े कई संस्थान हैं, जिनकी सुरक्षा का इंतजाम केंद्र सरकार के हाथ में होना जरूरी है. यह देश की छवि को दुनियाभर में अच्छे से प्रदर्शित करने के लिए जरूरी फैसला है.
SC द्वारा दी शक्तियां छीनने की कोशिश
केंद्र सरकार के इस अध्यादेश के बाद एक बार फिर आप ने सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया है. पार्टी का कहना है कि केंद्र का अध्यादेश दिल्ली की निर्वाचित सरकार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई शक्तियां छीनने का प्रयास किया जा रहा है. केंद्र सरकार केजरीवाल सरकार का काम रोकने के लिए ऐसा कर रही है. केंद्र सरकार यह ‘असंवैधानिक’ अध्यादेश ऐसे समय में ले आई है, जब उच्चतम न्यायालय अवकाश के कारण बंद रहेगा. यह अध्यादेश कहता है कि दिल्ली के लोगों ने भले ही केजरीवाल को वोट दिया है, लेकिन वह दिल्ली को नहीं चलाएंगे.
‘कोर्ट का फैसला बीजेपी को सहन नहीं हुआ’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास पूरी ताकत है और यह ताकत है अफसरों की जवाबदेही, अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग, भ्रष्ट अफसरों पर एक्शन लेने की ताकत है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मतलब हुआ कि अगर दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल को चुना है तो निर्णय लेने की ताकत अरविंद केजरीवाल के पास है. लैंड, लॉ-एंड ऑर्डर और पुलिस को छोड़कर निर्णय लेने की ताकत अरविंद केजरीवाल की है लेकिन भाजपा से यह सहन नहीं हुआ.
– भारत एक्सप्रेस
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