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75th Republic day: ‘भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जाता है..’, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का देश के नाम संबोधन

President Droupadi Murmu Speech: 26 जनवरी 2024 को भारत का 75वां गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज देश को संबोधित किया. अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने सरकार की विकास योजनाओं के अलावा भविष्य की नीतियों पर बात की. अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा, केंद्र सरकार उपलब्धियों का भी जिक्र किया. उन्‍होंने कहा- ‘भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जाता है, यह गणतंत्र दिवस हमारे अधिकारों का स्मरण करने का महत्‍वपूर्ण अवसर है.’

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि मैं पीछे मुड़कर देखती हूं कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हमने बहुत लंबी यात्रा की है. यह गणतंत्र दिवस कई अर्थों में बहुत खास है. यह हमारे लिए उत्सव मनाने का अवसर है.

राष्ट्रपति बोलीं- “जैसे हमने स्वाधीनता दिवस के 75 साल पूरे होने पर आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान देश की अतुलनीय महानता का उत्सव मनाया था. अब कल के दिन हम संविधान के प्रारंभ का उत्सव मनाएंगे. हमारे संविधान की प्रस्तावना हम भारत के लोग से शुरू होती है. यह शब्द लोकतंत्र की अवधारणा को रेखांकित करते हैं. इसी वजह से भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जाता है.”

यह भी पढिए- अयोध्या में पीएम का ऐतिहासिक संबोधन: भारत और इसकी सभ्यता के लिए एक नया युग

राष्ट्रपति बोलीं- “एक लंबे और कठिन संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली. हमारा देश विदेशी शासन से मुक्त हुआ. हमारा देश स्वतंत्रता की शताब्दी की ओर बढ़ते हुए अमृत काल के प्रारंभिक दौर से गुजर रहा है. यह एक युगांतकारी परिवर्तन का कालखंड है.”

राष्ट्रपति बोलीं- “हमें अपने देश को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का अवसर मिला है. हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक नागरिकों का योगदान महत्वपूर्ण होगा. इसीलिए मैं सभी देशवासियों से संविधान के मूल कर्तव्यों का पालन करने के लिए अनुरोध करूंगी”.

100 साल पूरे होने पर भारत बने विकसित राष्ट्र

राष्ट्रपति बोलीं- “देश के प्रत्येक नागरिक को ध्यान देना है कि आजादी के 100 साल पूरे होने पर भारत एक विकसित राष्ट्र बने. इसके लिए सभी नागरिकों को अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा. इस संदर्भ में मुझे महात्मा गांधी का स्मरण आता है कि उन्होंने ठीक कहा था कि जिसने केवल अधिकारों को चाहा है, ऐसी प्रजा उन्नति नहीं कर सकी है. केवल वही प्रजा उन्नति कर सकी है, जिसने कर्तव्य का धार्मिक रूप से पालन किया है.”

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