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New Year Celebration 2025: जानें कैसे 1 जनवरी बना नए साल का प्रतीक और इसके पीछे की ऐतिहासिक कहानी

नए साल का जश्न दुनिया भर में उत्साह और अनोखी परंपराओं के साथ मनाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1 जनवरी को ही नया साल क्यों मनाया जाता है? जानें कैसे समय का गणित और विज्ञान ने इस दिन को नए साल का प्रतीक बनाने में अहम भूमिका निभाई.

New Year Celebration 2025

New Year Celebration 2025: दुनिया के सबसे पूर्वी हिस्से में स्थित न्यूजीलैंड का ऑकलैंड, नए साल का स्वागत करने वाला पहला प्रमुख शहर बन गया. हर साल की तरह इस बार भी ऑकलैंड ने 2025 का स्वागत बेहद खास अंदाज में किया. देश के सबसे लंबे स्काई टावर पर हजारों लोग जमा हुए और आतिशबाजी का अद्भुत नजारा देखा. रंगीन रोशनी और खुशियों के माहौल ने ऑकलैंड को उत्साह और उमंग से भर दिया.

इसके बाद, ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में भी नए साल की एंट्री हुई. वहां सिडनी हार्बर ब्रिज पर आयोजित पारंपरिक आतिशबाजी देखने के लिए लगभग 10 लाख लोग पहुंचे. यह आतिशबाजी 12 मिनट तक चली और इसने पूरे आसमान को रंग-बिरंगी रोशनी से भर दिया.

न्यूजीलैंड भारत से साढ़े 7 घंटे आगे है, जबकि अमेरिका भारत से साढ़े 9 घंटे पीछे. इस वजह से नए साल का जश्न पूरी दुनिया में लगभग 19 घंटे तक चलता है.

क्यों बनाए गए टाइम जोन?

पृथ्वी जब सूरज के चारों ओर एक पूरा चक्कर लगाती है, तो एक साल पूरा होता है. इसी तरह, जब पृथ्वी अपनी धुरी पर एक बार घूमती है, तो दिन और रात होते हैं. पृथ्वी लगातार अपनी धुरी पर घूमती रहती है, इसलिए दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में एक ही समय पर कहीं सुबह होती है, कहीं दोपहर, और कहीं रात. उदाहरण के तौर पर यदि भारत में जब दिन हो रहा होता है तो ठीक उसी समय अमेरिका में रात हो रही होती है. इसी कारण, दुनिया को अलग-अलग टाइम जोन में बांटा गया है.

16वीं सदी में घड़ी का आविष्कार हुआ, लेकिन 18वीं सदी तक समय सूरज की स्थिति के आधार पर तय किया जाता था. सूरज जब सिर पर होता था, तब घड़ी में 12 बजाए जाते थे. अलग-अलग देशों के अलग-अलग समय से शुरुआत में कोई समस्या नहीं थी. लेकिन जैसे-जैसे रेल परिवहन शुरू हुआ और लोग कुछ ही घंटों में एक देश से दूसरे देश पहुंचने लगे, समय का सही हिसाब रखना जरूरी हो गया.

इस समस्या का सामना सबसे पहले कनाडाई रेलवे इंजीनियर सर सैंडफोर्ड फ्लेमिंग (Sir Sandford Fleming) ने किया. 1876 में उनकी ट्रेन सिर्फ इसलिए छूट गई क्योंकि अलग-अलग जगहों के समय में काफी अंतर था. उन्होंने इस समस्या का समाधान निकालते हुए दुनिया को 24 टाइम जोन में बांटने का सुझाव दिया.

कैसे बांटा गया दुनिया को 24 टाइम जोन में?

पृथ्वी हर 24 घंटे में अपनी धुरी पर 360 डिग्री घूमती है. इस हिसाब से हर घंटे 15 डिग्री घूमती है. सैंडफोर्ड ने 24 समान दूरी वाले टाइम जोन बनाए, जिनमें हर जोन 15 डिग्री का होता है.

हर डिग्री को 4 मिनट का समय माना गया. इसका मतलब, अगर कोई देश ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से 60 डिग्री दूर है, तो उसका समय 60 × 4 = 240 मिनट (4 घंटे) का अंतर होगा.

क्यों चुना गया ग्रीनविच को टाइम जोन का केंद्र?

समस्या तब भी बनी रही कि इन 24 टाइम जोन का केंद्र किसे माना जाए. 1884 में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें इंग्लैंड के ग्रीनविच को प्राइम मेरिडियन (शून्य रेखा) के रूप में चुना गया.

ब्रिटेन को चुनने के पीछे कई कारण थे:

  1. ग्रीनविच में खगोलीय घटनाओं का अध्ययन लंबे समय से हो रहा था.
  2. उस समय ब्रिटेन दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश था और व्यापार में अग्रणी था.
  3. समुद्री व्यापार में ब्रिटेन के समय का इस्तेमाल किया जाता था.

बता दें कि भारत का समय GMT (Greenwich Mean Time) से साढ़े 5 घंटे आगे है, जबकि अमेरिका का समय GMT से 5 घंटे पीछे है.

नया साल सबसे पहले कहां मनाया जाता है?

न्यूजीलैंड दुनिया का सबसे पूर्वी देश है, जहां सबसे पहले नया साल मनाया जाता है. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया, जापान, और अन्य ओशिनिया देशों में नया साल आता है. जब न्यूजीलैंड में 1 जनवरी की शुरुआत होती है, तब भारत में 31 दिसंबर की शाम के 4:30 बज रहे होते हैं.

अमेरिका में नया साल भारतीय समयानुसार 1 जनवरी को सुबह 10:30 बजे आता है. इस तरह, 19 घंटे में पूरा विश्व 1 जनवरी के जश्न में शामिल हो जाता है.

चीन में 1 जनवरी को नहीं मनाया जाता नया साल

चीन उन गिने-चुने देशों में से एक है जो 1 जनवरी को नए साल का जश्न नहीं मनाते. इसका कारण है कि चीन लूनीसोलर कैलेंडर का इस्तेमाल करता है. यह कैलेंडर चंद्रमा के चक्कर पर आधारित है. इसमें हर महीने का अंत तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है. यह चक्कर लगभग 29.5 दिनों में पूरा होता है.

चीन में 12वें महीने के 30वें दिन नए साल का जश्न मनाया जाता है, जिसे ‘दानियन संशी’ कहा जाता है. इस दिन लोग पूर्वजों की पूजा करते हैं, परिवार के साथ डिनर करते हैं, ड्रैगन और लॉयन डांस का आयोजन करते हैं, एक-दूसरे को लाल रंग के कार्ड देते हैं. यह त्योहार चीन के अलावा वियतनाम, दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया, और मंगोलिया जैसे देशों में भी अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है.

1 जनवरी को नया साल क्यों मनाया जाता है?

1 जनवरी को नए साल के रूप में मनाने की परंपरा रोम से शुरू हुई. 2637 साल पहले (673 ईसा पूर्व) रोम के राजा नूमा पोंपिलस ने कैलेंडर में बदलाव कर मार्च की जगह जनवरी को साल का पहला महीना घोषित किया. उनका तर्क था कि जनवरी का नाम नई शुरुआत के देवता जानूस के नाम पर रखा गया है, जबकि मार्च युद्ध के देवता मार्स से संबंधित है.

46 ईसा पूर्व में रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने रोमन कैलेंडर में बदलाव किया. उनके खगोलविदों ने बताया कि पृथ्वी को सूर्य का चक्कर लगाने में 365 दिन और 6 घंटे लगते हैं. इस जानकारी के आधार पर सीजर ने रोमन कैलेंडर को 310 दिन से बढ़ाकर 365 दिन का किया. हर 4 साल में फरवरी में एक अतिरिक्त दिन जोड़ने का प्रावधान रखा. इसके बाद से 1 जनवरी को आधिकारिक रूप से नए साल के रूप में मनाना शुरू किया गया.

दुनिया भर में नए साल के जश्न और परंपराएं

नए साल का जश्न हर देश में अलग-अलग तरीकों और परंपराओं से मनाया जाता है. कुछ अनोखी परंपराएं इस प्रकार हैं:

स्पेन: नए साल की पूर्व संध्या पर लोग 12 अंगूर खाते हैं. हर अंगूर एक महीने की समृद्धि का प्रतीक होता है.

डेनमार्क: यहां लोग अपने पुराने बर्तनों को तोड़कर दोस्तों और परिवार के घरों के सामने रखते हैं. यह सौभाग्य का प्रतीक है.

जापान: मंदिरों में 108 बार घंटी बजाई जाती है. यह जीवन की बुराइयों को दूर करने का प्रतीक है.

इटली: लोग लाल रंग के कपड़े पहनते हैं, जो खुशी और समृद्धि का प्रतीक है.

फिलीपींस: यहां गोलाकार फलों का सेवन किया जाता है, जो धन और समृद्धि का प्रतीक है.

नए साल का जश्न सिर्फ आतिशबाजी, पार्टियों और परंपराओं तक सीमित नहीं है, यह एक ऐसा पल है जो पूरी दुनिया को जोड़ता है. अलग-अलग टाइम जोन, विविध संस्कृतियां, और अनगिनत परंपराओं के बावजूद, हर देश का मकसद एक ही होता है—अतीत को विदाई देना और भविष्य को खुले दिल से अपनाना.

-भारत एक्सप्रेस



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