
दिल्ली हाई कोर्ट ने मकोका मामले में तिहाड़ जेल में बंद सैयद अहमद शकील की ओर से दायर याचिका पर कहा कि आतंकवाद, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) एवं अन्य जघन्य अपराध के आरोपों का सामना कर रहे कैदियों को टेलीफोन एवं इलेक्ट्रॉनिक संचार की सुविधाओं के उपयोग की अनुमति नहीं देना प्रथम दृष्टया मनमाना नही है.
जस्टिस विभु बाखरु और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने याचिका पर सुनवाई के बाद कहा कि दिल्ली कारागार नियम, 2018 के धारा 631 में स्पष्ट रूप से संकेत दिया गया है कि सार्वजनिक सुरक्षा एवं लोक व्यवस्था के हित में इस तरह की सुविधाएं देने से इनकार किया जा सकता है.
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इसे मनमाना या अनुचित नहीं माना जा सकता है. याचिकाकर्ता सैयद अहमद शकील ने नियम 631 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी. अदालत ने कहा कि यह नियम जेल अधीक्षक को उपमहानिरीक्षक (रेंज) के पूर्व अनुमति के आधार पर मामलों में उपयुक्त फैसले लेने के लिए सशक्त करता है.
इस तरह की सुविधाएं उस स्थिति में प्रदान की जा सकती है, जब जनहित और लोक सुरक्षा खतरे में नहीं हो. कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा एवं लोक व्यवस्था के हित में खतरा नहीं होने की दशा में उक्त सुविधाएं दिया जाना हानिकारक नहीं माना जाता है. इसके तहत कैदियों के लिए सुविधाएं देने की व्यवस्था की गई है.
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