
महाकुंभ में पौष पूर्णिमा के दिन से शुरू हुआ कल्पवास आज अपने अंतिम पड़ाव पर है. महाकुंभ में व्रत, संयम और सत्संग का कल्पवास करने विशेष विधान माना जाता हैं. इस बार प्रयागराज के महाकुंभ में 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने विधिपूर्वक कल्पवास का किया.
पुराणों का कहना हैं कि माघ महिना में संगम तट पर कल्पवास करने से (सहस्त्र वर्षों ) दस सौ वर्षो के बराबर फल मिलता हैं. महाकुंभ में कल्पवास को को विशेष महत्व दिया जाता हैं. मान्यता के अनुसार 12 फरवरी यानी आज माघ पूर्णिमा के दिन कल्पवास की समाप्ति हो रही है. महाकुंभ में जितने कल्पवासी है. वो आज संगम में डुबकी लगाकर कल्पवास व्रत का पारण करेंगे.
ऐसे पूरा होता है कल्पवास
शास्त्रों के अनुसार कल्पवासी माघ पूर्णिमा के दिन संगम में स्नान कर के व्रत रखते हैं. उसके बाद बाद संगम तट पर अपने तंबू में आकर सत्यनारायण भगवान की कथा सुनते है और हवन करगें और उसके बाद कल्पवासी अपनी तीर्थपुरोहितों को अपनी यथाशक्ति मुताबिक दान करते हैं.
जिसके बाद वह कल्पवास के शुरू में बोए गए जौ को गंगा में विसर्जित करेंगे और तुलसी के पौधे को साथ घर ले जाएंगे. ऐसा माना जाता है कि उस तुलसी के पौधे में मां लक्ष्मी का वास हो जाता है. साथ ही वो यहां से कल्पवासी भोज करने बाद घर जाते हैं. और ऐसा माना जाता हैं कि बिना ब्राह्मणों को भोज कराए कल्पवास पूर्ण नहीं होता हैं.
लाखों श्रद्धालुओं ने संगम में लगाई आस्था की डुबकी
महाकुम्भ में माघी पूर्णिमा के अवसर पर बुधवार को लाखों श्रद्धालुओं ने गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम आस्था की डुबकी लगाई. माघ पूर्णिमा स्नान पर्व के साथ प्रयागराज संगम की रेती पर चल रहे महाकुम्भ मेले का आज समापन हो गया हैं. वैसे तो मेला 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के अवसर तक चलेगा.
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-भारत एक्सप्रेस
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