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Hockey WC: मिट्टी के घर में रहने और खेतों में बकरी चराने वाला कैसे बना इंडियन हॉकी टीम का डिफेंडर?

नीलम खेस को सबसे पहले पहचान तब मिली जब 2016 में उन्हें  अंडर-18 एशिया कप के लिए भारतीय हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया था. इसके बाद से नीलम खेस ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा है, और अपनी मेहनत के बल पर सीनियर टीम में अपनी जगह बनाई है.

Nilam Xess Profile Story: सफलता व्यक्ति के संघर्षों से पर्दा उठाती है और दूसरों के लिए प्रेरणा का काम करती है जबकि असफलता में संघर्ष की अनेकों कहानियां अपनी उपस्थिति दर्ज कराए बिना कहीं खो जाती हैं. हॉकी विश्व कप में स्पेन के खिलाफ उद्घाटन मुकाबले में इंडिया की तरफ से डेब्यू करने जा रहे डिफेंडर नीलम खेस की कहानी कुछ ऐसी ही है. खेतों में बकरी चराने से लेकर इंडियन हॉकी टीम का मेंबर बनने की नीलम खेस की कहानी उस सपने के पूरे होने की कहानी है जिसके पीछे संघर्ष की एक लंबी दास्तान छुपी है.

लालटेन खरीदने के नहीं थे पैसे

ओडिशा के सुंदरगढ़ के कदोबहाल गांव (रायबोगा) में 7 जनवरी 1998 को एक गरीब किसान परिवार में नीलम खेस का जन्म हुआ था. उनके गांव में न तो पानी की सुविधा थी और न ही बिजली की. रात में रौशनी के लिए लालटेन खरीदने के पैसे भी नहीं थे. मिट्टी के घर में रहने वाले नीलम खेस को तंगहाली की वजह से बचपन से ही पैसे कमाने का दबाव था और वे खेतों में बकरी चराने जाया करते थे. वे अपने पिता के साथ खेतों में भी काम किया करते थे. 7 साल की उम्र में नीलम को हॉकी से लगाव हो गया था. वह स्कूल में ब्रेक के दौरान अपने भाई के साथ मैदान पर एक स्टिक से हॉकी खेलते थे. पढ़ाई से ज्यादा हॉकी पर ध्यान देने की वजह से उन्हें घरवालों की फटकार भी सुननी पड़ती थी लेकिन वे हॉकी में अपने देश के लिए खेलने का सपना देख चुके थे और उससे कभी डिगे नहीं.

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बीरेंद्र लकड़ा ने की काफी मदद

उधार लेकर अपना हॉकी स्टिक खरीदने वाले नीलम खेस के हॉकी खिलाड़ी बनने के सपने को पूरा करने में स्थानीय कोच तेजकुमार खेस और फिर स्टार खिलाड़ी बीरेंद्र लाकड़ा ने काफी मदद की. तेजकुमार ने जहां उन्हें डिफेंडिंग की कला सिखाई वहीं जब उनका पहली बार नेशनल कैंप के लिए चयन हुआ तो बीरेंद्र लकड़ा उनकी काफी मदद की. नीलम खेस ने एक इंटरव्यू में बीरेंद्र लकड़ा के बारे में कहा है कि, वह मुझे अपने भाई जैसा मानते थे और मुझे बहुत सी चीजें सिखाई. उन्होंने टैक्लिंग, पोजिशनिंग, दबाव झेलने के बारे में सिखाया.”

गरीबी दुर कर सकती है हॉकी

2010 में नीलम खेस का सेलेक्शन सुंदरगढ़ के स्पोर्ट्स हॉस्टल के लिए हुआ. यहां आकर उन्हें पता चला कि हॉकी खेल कर भी पैसा कमाया जा सकता है. नीलम खेस ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था, “मुझे पता चला कि हॉकी खेलकर भी पैसा कमाया जा सकता है. इज्जत मिलती है, इसलिए मैंने खिलाड़ी बनने के लिए कड़ी मेहनत की. फिर मैंने लदन ओलंपिक्स 2012 देखा. इसके बाद मैंने देश के लिए खेलने के लिए गोल सेट किया.” साथ ही नीलम ने अपने डिफंडर बनने के पीछे की कहानी बयां करते हुए कहा कि, उनके साथ के सभी फॉरवर्ड बनना चाहते थे क्योंकि इसमें गोल करने के चांस ज्यादा होते हैं इसलिए उन्होंने डिफेंडर बनने का निश्चय किया.

2016 में मिली पहचान

नीलम खेस को सबसे पहले पहचान तब मिली जब 2016 में उन्हें  अंडर-18 एशिया कप के लिए भारतीय हॉकी टीम का कप्तान बनाया गया था. इसके बाद से नीलम खेस ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा है, और अपनी मेहनत के बल पर सीनियर टीम में अपनी जगह बनाई है. नीलम के लिए ये विश्व कप खास इसलिए भी है क्योंकि ये उनके गृह राज्य में ही हो रहा है.

सरकार से मदद की उम्मीद

नीलम खेस के पिता बिपिन ने न्यूज एजेंसी एनआई से बातचीत करते हुए कहा, ”हमें अभी तक सरकार से कोई मदद नहीं मिली है. कच्चे घर में रहने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है. हमारा बेटा जब छुट्टियों में घर आता है तो वह भी इसी कच्चे घर में रहता है. अगर सरकार हमें किसी भी योजना के तहत पक्का घर मुहैया कराती है तो हम आभारी होंगे.”

फैंस को उम्मीद, चैंपियन बनेगी इंडिया

हॉकी विश्वकप 2023 का आयोजन इंडिया में हो रहा है. 13 जनवरी से 29 जनवरी तक चलने वाले हॉकी के इस महाकुंभ के सभी मुकाबले ओडिशा के भुवनेश्वर और राऊरकेला में खेले जाएंगे. आमतौर पर क्रिकेट में मशरुफ रहने वाले इंडियंस के दिलो दिमाग पर फिलहाल हॉकी का बुखार चढ़ा हुआ है और फैंस उम्मीद कर रहे हैं कि टोक्यो ओलंपिक में ब्रांज और कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर जीतने वाली टीम इंडिया इस बार 47 साल बाद हॉकी की विश्व चैंपियन बनकर उभरेगी.

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