ब्रिटेन सरकार की आतंकवाद को रोकने संबंधी एक योजना की समीक्षा में कश्मीर को लेकर ब्रितानी मुसलमानों के कट्टरपंथी होने और खालिस्तान समर्थक अतिवाद को बढ़ती चिंता के रूप में चिह्नित किया है तथा देश के लिए ‘‘प्राथमिक खतरे’’ के रूप में इस्लामी चरमपंथ से निपटने में सुधार की सिफारिशें की गई हैं.
सरकार की आतंकवाद-रोधी शुरुआती हस्तक्षेप रोकथाम रणनीति की इस सप्ताह प्रकाशित समीक्षा में चेतावनी दी गई कि ‘‘विशेष रूप से कश्मीर के विषय में भारत विरोधी भावना को भड़काने’’ के संदर्भ में पाकिस्तान की बयानबाजी ब्रिटेन के मुस्लिम समुदायों को प्रभावित कर रही है.
इस्लामवादी आने वाले वर्षों में इसका फायदा उठाना चाहेंगे
समीक्षा में कहा गया है कि इस बात पर विश्वास करने की कोई वजह मौजूद नहीं है कि यह मुद्दा ऐसे ही समाप्त हो जाएगा, क्योंकि इस्लामवादी आने वाले वर्षों में इसका फायदा उठाना चाहेंगे. इसमें कहा गया, ‘‘इसकी रोकथाम संभवत: प्रासंगिक है, क्योंकि ब्रिटेन में आतंकवाद के अपराधों के कई ऐसे दोषी पाए गए हैं, जिन्होंने पहले कश्मीर में लड़ाई लड़ी थी. इसमें वे लोग भी शामिल हैं जो बाद में अल-कायदा में शामिल हो गए.’’
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रिपोर्ट में खालिस्तान समर्थक अतिवाद के मुद्दे पर कहा गया, ‘‘ब्रिटेन के सिख समुदायों में उत्पन्न हो रहे खालिस्तान समर्थक चरमपंथ के प्रति भी सावधान रहना चाहिए. ब्रिटेन में सक्रिय खालिस्तान समर्थक समूहों की एक छोटी संख्या द्वारा यह झूठा आख्यान फैलाया जा रहा है कि सरकार सिखों को परेशान करने के लिए भारत में अपने समकक्ष के साथ मिलीभगत कर रही है.’’
इस्लामावाद से निपटने का अर्थ मुस्लिम-विरोधी होना नहीं
ब्रिटेन की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने बुधवार को ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में कहा कि वह ‘रोकथाम रणनीति’ में समीक्षा की सभी सिफारिशों को ‘‘तेजी से लागू’’ करने का इरादा रखती हैं. भारतीय मूल की मंत्री ने सांसदों से कहा, ‘‘सच यह है कि इस्लामावाद से निपटने का अर्थ मुस्लिम-विरोधी होना नहीं है और यदि हमें इसे प्रभावी तरीके से करना है, तो हमें मुस्लिम समुदायों के साथ मिलकर काम करना जारी रखना चाहिए.’’
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