Bharat Express

Karnataka Election 2023: इन 10 पॉइंट्स में जानिए कर्नाटक में कांग्रेस की जीत और बीजेपी के हार की असली वजह

Karnataka Election Results: विश्लेषण इस बात का है कि आखिर क्या वजह रही कि कांग्रेस ने हैवी-वेट मानी जाने वाली बीजेपी को इतना बड़ा डेंट डाल दिया. आइये 10 पॉइंट्स में जानते हैं.

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत

Karnataka Election 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना झंडा बुलंद कर दिया है. पार्टी ने बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है. 1999 से भी ज्यादा कांग्रेस को इस बार सबसे ज्यादा मत प्रतिशत हासिल हुए हैं. कांग्रेस को जहां 1999 में 40 प्रतिशत मत हासिल हुए थे, वहीं इस पर मत प्रतिशत 42 फीसदी से ज्यादा है. इस बीच विश्लेषण इस बात का है कि आखिर क्या वजह रही कि कांग्रेस ने हैवी-वेट मानी जाने वाली बीजेपी को इतना बड़ा डेंट डाल दिया. यही नहीं कांग्रेस ने एक तरह से जेडीएस के कुनबे में भी बड़ी सेध लगा दी. हम आपको संक्षेप में स्टेपवाइज उन कारणों से रूबरू कराएंगे, जिनकी बदौलत कांग्रेस ने प्रचंड जीत हासिल की और बीजेपी को तगड़ी हार नसीब हुई है

1. BJP में आंतरिक कलह

विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी में टिकट बंटवारे को लेकर काफी कलह देखी गई. जगदीश शेट्टार जैसे नेताओं ने पार्टी को अलविदा कहकर कांग्रेस का दामन थाम लिया. बीजेपी नेताओें का कांग्रेस में शामिल होने का मनोवैज्ञानिक असर काफी देखा गया. बीजेपी की फूट का कांग्रेस ने जबरदस्त ढंग से लाभ उठाया. अभी तक कांग्रेस को तोड़ने वाली बीजेपी खुद टूट रही थी और कांग्रेस उस टूट पर भारी पड़ रही थी.

2. येदियुरप्पा की चुनाव में देरी से एंट्री

पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा चुनाव के मैदान में उतरे. लेकिन, उनकी बॉडी लैंग्वेज और जुबान में वो धार नहीं दिखी, जिसके लिए वो जाने जाते हैं. जिस वक्त प्रचार में येदियुरप्पा उतरे तब तक कांग्रेस का उनके परंपरागत वोट बैंक लिंगायत में सेध लगाने की फुर्सत मिल चुकी थी.

3. सीएम बोम्मई के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी

मुख्यमंत्री बोम्मई के खिलाफ भयंकर एंटी इनकंबेंसी रही. भले ही डबल इंजन की सरकार का नारा दिया गया हो, लेकिन जमीन पर लोग सरकार के कामकाज से अंसतुष्ट थे. लोगों की आकाक्षों से बोम्मई सरकार कोसो दूर थी.

यह भी पढ़ें- Karnataka Election Results 2023: JDS किस पार्टी के साथ करेगी गठबंधन ? एचडी कुमारस्वामी ने किया बड़ा ऐलान, बोले- अगर हमारी…

4. बीजेपी के लिए घातक बने राष्ट्रीय मुद्दे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे करके बीजेपी ने विधानसभा चुनाव जीतने की आखिरी चाल चली. लेकिन, राष्ट्रीय मुद्दे स्थानीय लोगों को कुछ खास अपील नहीं कर पाए. लोगों के लिए स्थानीय मुद्दे मायने रखे. इसकी झलक उस वक्त भी मिली जब कांग्रेस ने स्मार्टली नंदनी बनाम अमूल का मुद्दा छेड़ दिया. यहां स्पष्ट तौर पर बीजेपी बैकफुट पर दिखाई दे रही थी.

5. कांग्रेस में अनुशासन

कांग्रेस की कमान डीके शिवकुमार ने बाखूबी निभाई. चुनाव में कांग्रेस के टिकट बंटवारे से लेकर पार्टी को अनुशासित रखने का काम शिवकुमार ने जबरदस्त ढंग से मैनेज किया. उन्होंने ताकतवर की पहचान की और कमजोर कड़ियों को पीछे धकेला. डीके शिवकुमार ने वक्त रहते कई बड़ी बगावतों पर भी नकेल कस डाली.

6. कांग्रेस का घोषणा पत्र

एक ओर जहां बीजेपी के घोषणा पत्र में राष्ट्रीय मुद्दों की भरमार थी. वहीं, कांग्रेस का मेनिफेस्टो काफी प्रभावी और स्पेसिफिक रहा. महिलाओं पर ज्यादा फोकस रखा गया और गरीबों को सिक्योरिटी देने की बात कही गई. युवाओं को महिलाओं के बाद सबसे ज्यादा तवज्जो दी गई. परिवार की महिला मुखिया को 2 हजार रुपये की आर्थिक मदद, एजुकेशन में सहायता, रोजगार के लिए बिना ब्याज फंड जैसे मुद्दे काफी आकर्षित करने वाले रहे.

7. मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना

मल्लिकार्जुन खड़गे दलित दबके से संबंध रखते हैं… माना जा रहा है कि कांग्रेस को दलित और ओबीसी से एकतरफा वोट पड़े हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि खड़गे का चेहरा और उनकी कांग्रेस में हैसियत ने इस वर्ग का विश्वास हासिल करने में मदद की.

8. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा

इसमें कोई संदेह नहीं कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस के भीतर एक ऊंर्जा का संचार किया है. राहुल की यात्रा चूंकि दक्षिण भारत से शुरू हुई थी और उन्होंने कर्नाटक में काफी वक्त भी दिया. इसका परिणाम रहा कि उन्होंने वक्त रहते पार्टी के लिए एक मोमेंटम खड़ा कर दिया.

9. कुमारस्वामी का घटता ऐतबार

एचडी कुमारस्वामी की पिछली पोलिटिकल हिस्ट्री से भी जनता ने तौबा कर लिया. पुराने मैसूर में जिस तरह से जेडीएस का सफाया हुआ है और कांग्रेस ने कब्जा जमाया है, उसे देख लकता है कि कुमारस्वामी का कमजोर होने का सीधा फायदा कांग्रेस ने ही उठाया है.

10. कांग्रेस के लोकल चेहरे रहे प्रॉमिनेंट

कांग्रेस ने अपने तमाम स्टार प्रचारकों के बीच लोकल चेहरों को काफी तरजीह दी. इलेक्शन मैनेजर की भूमिका में डीके शिवकुमार ने लोकल मुद्दों पर, लोकल भाषा और लोकल लीडरशिप को तरजीह दी. वहीं, बीजेपी के लिए आखिर में पीएम नरेंद्र मोदी का ही सहारा बचा था.

– भारत एक्सप्रेस



इस तरह की अन्य खबरें पढ़ने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज़ ऐप डाउनलोड करें.

Also Read