आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव.
भ्रामक विज्ञापनों और विवादित टिप्पणियों के कारण अक्सर चर्चा में रहने वाले योगगुरु रामदेव को सुप्रीम कोर्ट ने अदालत में व्यक्तिगत तौर पर तलब किया है. माना जा रहा है कि गंभीर बीमारियों के स्थायी उपचार का दावा करके अपने उत्पाद बेचने वाले रामदेव की मुसीबत बढ़ने वाली हैं. इसका बड़ा कारण भी रामदेव के रवैये को माना जा रहा है.
दरअसल उन्होंने शीर्ष अदालत की कड़ी फटकार के बावजूद उसके द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस को नजरअंदाज कर दिया और उसका जवाब देना भी जरूरी नहीं समझा. इससे खफा सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को अगली सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने का आदेश दिया है.
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दुनिया भर में प्रचलित चिकित्सा पद्धति का मखौल उड़ाकर गंभीर बीमारियों का स्थायी इलाज करने के दावों के साथ अपनी कंपनी पतंजलि का माल बेचने वाले योगगुरु रामदेव की मुसीबत बढ़ती नजर आ रही है. इस मामले में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की गुहार पर मामले की सुनवाई कर रही शीर्ष अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण को नोटिस जारी किया है.
नोटिस में उनके रवैये पर गंभीर सवाल उठाते हुए संभावित अवमानना कार्यवाही की चेतावनी दी गई थी. इस दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रथमदृष्टया बालकृष्ण और रामदेव ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 की धारा 3 और 4 का उल्लंघन कर रहे हैं.
अदालती आदेश की अनदेखी बनी मुसीबत!
दरअसल सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने बीते 27 फरवरी को पतंजलि आयुर्वेद और रामदेव के भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के आदेश पारित किए थे. इसके साथ ही उनके खिलाफ संभावित अवमानना की कार्रवाई को लेकर जवाब तलब करते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया था. लेकिन रामदेव ने इस आदेश की अनदेखी करते हुए अदालत के सवालों का जवाब देना जरूरी नहीं समझा. यही वजह रही कि मंगलवार (12 मार्च) को जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने रामदेव को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश पारित कर दिया.
अदालत का यह निर्देश 27 फरवरी को भ्रामक विज्ञापन प्रसारित करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद की आलोचना के बाद आया है. इन विज्ञापनों में बीपी, शुगर (मधुमेह), बुखार, मिर्गी और ल्यूपस जैसी चिकित्सकीय स्थितियों का इलाज करने का दावा किया गया था.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा मामलों पर कथित निष्क्रियता के लिए केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था, ‘पूरे देश को धोखा दिया गया है.’ उस समय पतंजलि को अदालत को जवाब देने के लिए तीन सप्ताह की अवधि दी गई थी, जिसमें यह बताने के लिए कहा गया था कि उसके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए.
अदालत की चेतावनी को किया दरकिनार
यहां उल्लेखनीय है कि नवंबर 2023 में शीर्ष अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद को चेतावनी दी थी कि भ्रामक विज्ञापनों के लिए उस पर प्रति विज्ञापन 1 करोड़ करोड़ रुपये तक का जुर्माना लग सकता है. इसी के साथ पतंजलि आयुर्वेद और उसके अधिकारियों को यह हिदायत भी दी थी कि वह मीडिया में किसी भी चिकित्सा प्रणाली की आलोचना करने वाले बयान जारी नहीं करेंगे.
हालांकि रामदेव ने आदेश की परवाह किए बिना IMA को डाक्टरों का ऐसा ‘गैंग’ घोषित कर दिया, जो उन्हें बदनाम करने का षड्यंत्र रच रहा है. रामदेव ने बालकृष्ण के साथ मिलकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करके अप्रत्यक्ष तौर पर अदालत के आदेश पर ही सवाल उठा दिया था.
रामदेव ने कहा था कि डॉक्टरों का गिरोह योग और नेचरोपैथी के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैला रहा है. उन्होंने यह दावा भी किया कि वह एविडेंस बेस्ड ट्रीटमेंट सिस्टम से बीमारियों को कंट्रोल यानी क्योर करते हैं. उन्होंने कई ऐसे युवकों और युवतियों को पेश करके यह दावा भी ठोका कि वह इन लोगों की शुगर और थायराइड की बीमारी पूरी तरह से ठीक कर चुके हैं. साथ ही आरोप लगाया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और पूरा मॉर्डन मेडिकल सिस्टम झूठ बोल रहा है.
IMA की आपत्ति पड़ी भारी
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद रामदेव ने भ्रामक विज्ञापनों का सिलसिला उसी रफ्तार से जारी रखा. जिसके खिलाफ Indian Medical Association (IMA) ने एक बार फिर अदालत का रुख किया. मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा कि अदालत के आदेश के बावजूद भ्रामक विज्ञापनों का सिलसिला जारी है, इसी के साथ दूसरी चिकित्सा पद्धति के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की जा रही है.
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पीठ ने कहा कि आप अदालत को मजबूर कर रहे हैं. साथ ही पतंजलि के सभी भ्रामक विज्ञापनों के प्रसारण पर तत्काल रोक लगाते हुए कहा कि हिम्मत है तो आप इस आदेश की अवहेलना करके दिखाएं.
उत्पादों को लेकर कठघरे में रह चुकी है पतंजलि
साल 2022 में उत्तराखंड सरकार के खाद्य सुरक्षा विभाग ने गाय के घी के नमूने की जांच की थी, जिसमें पाया गया था कि उसमें मिलावट है और वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. उत्तराखंड सरकार के आयुर्वेदिक और यूनानी विभाग ने पतंजलि की कुछ दवाओं जैसे बीपीग्रिट, मधुग्रिट, थायरोग्रिट और आईग्रिट गोल्ड आदि के उत्पादन पर भी रोक लगा दी थी.
बाद में कंपनी ने संशोधित फॉर्म्युलेशन की जानकारी देकर इस रोक को हटवाया था. साल 2021 में कोविड महामारी में दौरान पतंजलि ने ‘कोरोनिल’ के माध्यम से सात दिन में कोरोना ठीक होने का दम भरते हुए भ्रामक दावे किए थे. लेकिन आयुष विभाग की सख्ती के बाद इसे इम्यून बूस्टर के नाम पर बेचना पड़ा था.
कौन हैं रामदेव
करीब दो दशक पहले योग के माध्यम से समाज को जागरूक करने की मुहिम शुरू करने वाले राम किशन यादव कुछ ही सालों में बाबा रामदेव के नाम से मशहूर हो गए. नाम बढ़ा तो उन्होंने काले धन और भ्रष्टाचार के विरोध में भारत स्वाभिमान आंदोलन की शुरुआत कर दी, जिससे जुड़े राजीव दीक्षित की रहस्यमय मौत को लेकर भी गंभीर आरोप सामने आए थे. इसके बाद रामदेव ने पतंजलि के नाम से आयुर्वेदिक उत्पादों की कंपनी शुरू की और स्वदेशी का तड़का लगाकर भारतीय बाजार में अपनी गहरी पैठ बना ली.
-भारत एक्सप्रेस