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मेंथा की खेती कर मोटा मुनाफा कमा सकते हैं किसान, 3 महीने में लखपति बनने का आसान तरीका

मेंथा कि खेती करने वाले किसान कहते हैं कि इसकी फसल तीन महीनों में तैयार हो जाती है. ऐसे में अगर आप लगभग दस एकड़ में इस फसल की खेती करें तो महज तीन महीनों में आप लखपति हो जाएंगे.

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खेती किसानी

हमारे देश में औषधीय पौधों की खेती कई दशकों से होती आ रही है. इससे किसान अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं, क्योंकि इनका इस्तेमाल कई तरह की दवाइयां बनाने में किया जाता है और मांग हमेशा बनी रहती है. मेंथा एक ऐसी फसल है, जिसकी खेती करके किसान मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. मेंथा की खेती पूरे देश में होती है, लेकिन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और पंजाब के किसान मेंथा की खेती करते हैं. पूरी दुनिया में मेंथा से निकलने वाले मेंथा ऑयल की खपत करीब 9500 मीट्रिक टन है. इसके उत्पादन में भारत दुनिया में नंबर एक है.

केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान लगातार मेंथा की खेती पर शोध कर रहा है. मेंथा की अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. इसके साथ ही जल निकास की सुविधा अच्छी होनी चाहिए तथा मिट्टी का भुरभुरा होना भी आवश्यक है। मेंथा की ग्रोथ के लिए बारिश अच्छी मानी जा रही है. मेंथा बोने से पहले खेत की गहरी जुताई करनी होगी. आखिरी जुताई के समय खेत में 300 किलोग्राम गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालने से उपज अच्छी होती है.

एक हेक्टेयर में 3 लाख रुपये तक की कमाई

मेंथा ऑयल का उपयोग दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के साथ-साथ खुशबू के लिए भी किया जाता है. एक हेक्टेयर में लगाई गई मेंथा की फसल से 150 किलोग्राम तेल प्राप्त होता है। अगर मेंथा की खेती समय पर रोपाई, सिंचाई और उर्वरकों के प्रयोग से की जाए तो तेल का उत्पादन 250 से 300 किलोग्राम तक पहुंच सकता है. मेंथा ऑयल 1000 रुपये प्रति लीटर से अधिक दाम पर बिका. इस तरह देखा जाए तो अच्छा उत्पादन होने पर किसान एक हेक्टेयर से 3 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं. यह एक सीजन में किसी भी अन्य फसल से होने वाली कमाई से कई गुना ज्यादा है.

तेल निकालने से पहले मेंथा को पौधे को कटाई मशीन में ले जाया जाता है – फिर कटे हुए मेंथा को कुछ देर के लिए फैला दें. इससे पत्तियां पीली हो जाती हैं और वजन कम हो जाता है. इसके बाद इसे आसवन संयंत्र में भरकर गर्म किया जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान मेंथा से तेल निकलता है. बचे हुए अवशेष को खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है. किसानों को सलाह दी जाती है कि कटाई से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें. कीटों और बीमारियों पर नियंत्रण के लिए समय-समय पर खेत की निगरानी करने की सलाह दी जाती है. मेंथा की फसल 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है. इससे किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं.



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