Bharat Express

Justice Gautam Chowdhary: इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश डॉ. गौतम चौधरी ने हिंदी में 10 हजार से ज्यादा निर्णय देकर रचा इतिहास, ये हैं चर्चित फैसले

Gautam Chowdhary: जज गौतम चौधरी का डॉ. कफील खान के मामले में हिंदी भाषा में दिया गया निर्णय काफी चर्चा में रहा था. उनके द्वारा दिए गए 10 हजार निर्णयों में से कुछ महत्वपूर्ण निर्णय इस तरह के है.

ALLAHABAD hIGHCOURT

इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश डॉ. गौतम चौधरी

Allahabad high court: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज डॉ. गौतम चौधरी ने एक नया कीर्तिमान बनाया है. उन्होंने हिंदी भाषा में 10 हजार से अधिक फैसले लिखकर इतिहास रच दिया है. देश की मातृभाषा हिंदी के लिए उनका योगदान लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है. न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी ने 12 दिसंबर 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीश के पद पर शपथ ली थी. इसके ठीक आठ दिन बाद 20 दिसंबर 2019 को जब वे कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के लिए बैठे तो उन्होंने अपना पहला फैसला हिंदी में सुनाया. इसके बाद से ही वह अपने सभी फैसले हिंदी में ही सुनाते आ रहे हैं, अबतक वह तमाम जमानत याचिकाओं, पुनरीक्षण अर्जियों और अन्य मामलों में 10 हजार के ज्यादा फैसले हिंदी में दे चुके हैं.

डॉ. गौतम चौधरी का जन्म 9 नवंबर 1964 को हुआ था. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए (BA) और एलएलबी (LLB) की पढ़ाई की और बाद में काउंसिल आफ यूपी में 6 मार्च 1993 को विद्वान अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया. इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट से वकील के रूप में प्रैक्टिस करना प्रारंभ किया और न्याय जगत में अपनी एक नई पहचान बनाई.

हिंदी में फैसले सुनाने का चलन बढ़ा

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी के प्रयासों से हाल ही सालों में हिंदी में निर्णय देने का प्रचलन बढ़ा है. साल 2022 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में औसतन प्रतिदिन 20 मुकदमों में हिंदी में निर्णय देते थे क्योंकि तब तक उनके पास हिंदी में निर्णय लिखने वाले सिर्फ एक निजी सचिव के.सी. सिंह ही थे, लेकिन न्यायालय में हिंदी में निर्णय देने को बढ़ावा देने के उद्देश्य से न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी ने अपने अथक प्रयास से उच्च न्यायालय में 7 नए अपर निजी सचिवों की नियुक्ति कराई और उनमें से सी.पी. साहनी, शशि मिश्रा को अपने साथ जोड़ लिया.

रोजाना मुकदमों का निर्णय हिंदी में

अब इन तीन निजी सचिवों के सहयोग से न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी इलाहाबाद हाईकोर्ट में औसतन प्रतिदिन 60 मुकदमों में हिंदी में निर्णय दे रहे हैं. उनका मानना है कि मामले में उसका निर्णय उसी की भाषा में मिले तो उसे निर्णय समझने में आसानी रहती है और किसी शख्स को निर्णय समझने में उसे किसी का सहारा नही लेना पड़ता. न्यायमूर्ति डॉ. चौधरी कहते हैं कि अंग्रेजी और किसी अन्य भाषा से उनका कोई विरोध नहीं है, लेकिन हिंदी भाषा उनकी मां है. अंग्रेजी या उर्दू भाषा मौसी हो सकती है, लेकिन मां नहीं.

यह भी पढ़ें- ‘हम ब्‍लैक मनी को व्‍हाइट में बदल देंगे’, झांसा देकर बिजनेसमैन को जाल में फंसाया, IGI एयरपोर्ट पर दबोचे गए 2 जालसाज

न्यायमूर्ति गौतम चौधरी का डॉ. कफील खान के मामले में हिंदी भाषा में दिया गया निर्णय काफी चर्चा में रहा था. उनके द्वारा दिए गए 10 हजार निर्णयों में से कुछ महत्वपूर्ण निर्णय इस तरह के है.

– Application No U/S 482 No 29260/2021
निर्णय/सारः- दं.प्र .सं. की धारा 216 एवं 217 के अनुसार गवाहों को संशोधिधत की गई धारा में परीक्षर्ण हेतु फिर बुलाया जाये अथवा नहीं.

– Matters Under Article 227 No 2230/2020
निर्णय/सारः- वाद सुनने का क्षेत्राधिकार किस जनपद के न्यायालय को प्राप्त है.

– Habeas Corpus Writ Petition No.-634/2021
निर्णय/सारः- अवयस्क कार्पस की कस्टड़ी पाने हेतु अभिभावक और वार्ड अधिनियम के अंतर्गत वाद दायर किया जा सकता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत दायर याचिका में उक्त अनुतोष नहीं प्रदान किया जा सकता.

– Criminal Misc. Bail Application No. 16312/2023
निर्णय/सारः- सत्र परीक्षर्ण का निस्तारण काफी अधिक समय से (लगभग 9 वर्ष) से लंबित है तथा आवेदक कारागर में निरुद्ध है, सत्र परीक्षण के निवलम्ब से निस्तारित होने का खामियाजा अभियुक्त को भुगतना पड़ रहा है इसलिए अभियुक्त को जमानत प्रदान की जाती है.

– Criminal Misc. Bail Application No. 52841/2022
निर्णय/सारः- अभियुक्त द्वारा मात्र 13 कदम की दूरी से फायर फायर करना दर्शाया गया जबनिक मृतक के शरीर पर पायी गयी अग्न्यास्त्र की चोट में ब्लैकनिंग व टैटोइंग आना दर्शिशत है. जो घटना की संनिदग्धता को प्रदर्शित करता है। इसके आधार पर अभियुक्त को जमानत प्रदान की गयी.

– Criminal Misc. Bail Application No. 25623/2023
निर्णय/सारः- अभियोजन पक्ष को यह बात बताने की जिजम्मेदारी है कि अभियुक्त पक्ष को चोट कैसे आयी यदि अभियोजन इस बात को नहीं बताता तो इसका अर्थ है कि अभियोजन सही तथ्य को सामने नहीं ला रहा है. ऐसी स्थिति में यह माना जायेगा कि अभियोजन सही तथ्यों को छिपा रहा है, अथवा घटना की शुरुवात क्या है इसे भी अभियोजन पक्ष छिपा रहा है अथवा गवाह झूठ बोल रहे हैं.

– भारत एक्सप्रेस

 

Also Read