
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि ट्रायल कोर्ट ने किसी आरोपी को बरी कर दिया हो, तो उसे दोषी ठहराने के लिए ठोस और पर्याप्त सबूत जरूरी हैं. जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने पत्नी की हत्या के मामले में आरोपी जगदीश गोंड को बरी करते हुए यह टिप्पणी की. कोर्ट ने निर्दोषता की प्रत्याशा के सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए कहा कि उच्च न्यायालयों को ट्रायल कोर्ट के बरी करने के आदेश को केवल किसी स्पष्ट अवैधता या गंभीर त्रुटि के आधार पर ही पलटना चाहिए.
अकेले धारा 106 के आधार पर दोष सिद्ध नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अकेले भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के आधार पर दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता, जब तक कि अभियोजन पक्ष मृत्यु के कारण को स्पष्ट रूप से प्रमाणित न करे. कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी करने के फैसले को पलटने के लिए उच्च न्यायालय को ठोस और भरोसेमंद साक्ष्य पेश करने होंगे.
ट्रायल कोर्ट के फैसले में कोई स्पष्ट त्रुटि नहीं
कोर्ट ने अपने लिखित आदेश में कहा कि जब तक यह सिद्ध न हो कि ट्रायल कोर्ट के फैसले में कोई स्पष्ट अवैधता, तर्कहीनता या गंभीर त्रुटि है, तब तक आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. यदि किसी मामले में दो दृष्टिकोण संभव हैं, और ट्रायल कोर्ट द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण तर्कसंगत है, तो उसे आसानी से पलटा नहीं जाना चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट से बरी होने के बाद आरोपी की निर्दोषता की प्रत्याशा और भी मजबूत हो जाती है.
हाई कोर्ट का फैसला पलटा
इस मामले में हाई कोर्ट ने आरोपी जगदीश गोंड के कार्यस्थल पर मौजूद न होने के कारण ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार को अपर्याप्त मानते हुए हाई कोर्ट का फैसला रद्द कर दिया और गोंड को बरी कर दिया.
मामला: पत्नी की संदिग्ध मौत
29 जनवरी 2017 को जगदीश गोंड ने अपनी पत्नी के मृत पाई जाने की सूचना पुलिस को दी थी. शुरुआत में इस मामले को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 174 के तहत अस्वाभाविक मृत्यु के रूप में दर्ज किया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गर्दन पर फंदे का निशान पाया गया, लेकिन मौत का स्पष्ट कारण नहीं बताया गया. ट्रायल कोर्ट ने मेडिकल और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की कमी के चलते इसे आत्महत्या मानते हुए गोंड को बरी कर दिया था.
-भारत एक्सप्रेस
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