
दिल्ली हाई कोर्ट ने राजधानी के बाल कल्याण समितियों एवं किशोर न्याय बोर्ड में रिक्त पदों पर सदस्यों की नियुक्ति न किए जाने पर एक बार फिर आपत्ति जताई है. मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय एवं जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि रिक्तियों को भरने में लापरवाही बर्दाश्त नहीं कि जा सकती है. दिल्ली हाई कोर्ट ने ऐसे पदों के लिए चयन प्रक्रिया को समयबद्ध तरीके से पूरा करने का निर्देश दिया है.
कोर्ट ने रिक्त पदों को 6 सप्ताह में भरने का दिया आदेश
कोर्ट ने सरकार से स्पष्ट किया है कि रिक्त पदों को 6 सप्ताह के भीतर भरा जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग जुलाई 2023 से कार्यात्मक नहीं है. ऐसे में राष्ट्रीय राजधानी में बाल अधिकार पीछे चले गए हैं. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि फरवरी में केंद्रीय गृह सचिव ने आश्वासन दिया था कि दो सप्ताह के भीतर नामों को अंतिम रूप दे दिया जाएगा. उसके बावजूद नियुक्तियां नही की गई.
अदालत ने यह निर्देश NGO की ओर से दाखिल अर्जी पर दिया
अदालत ने नाबालिगों से जुड़े मामलों में सीडब्ल्यूसी एवं जेजेबी की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए पिछले साल सितंबर में चयन समिति की ओर से नामों की सिफारिश किए जाने के बावजूद नियुक्तियों में देरी पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी. अदालत ने यह निर्देश एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से दाखिल एक अर्जी पर सुनवाई के बाद दिया है.
याचिका में दिल्ली सरकार को राजधानी में सीडब्ल्यूसी में अध्यक्षों और सदस्यों के रिक्त पदों को एक निश्चित समय अवधि के भीतर भरने का निर्देश देने की मांग की गई थी. यह याचिका किशोर न्याय अधिनियम 2015 के कार्यान्वयन में कमियों से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसरण में हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर वर्ष 2018 में सुनवाई शुरू किया था.
एनजीओ ने अपनी याचिका में कही ये बात
एनजीओ ने अपनी याचिका में कहा है कि दिल्ली में अधिकांश सीडब्ल्यूसी अपने पूरे कोरम के साथ काम नहीं कर रहा है. अदालत को यह भी बताया गया कि 28 नवंबर 2023 को जारी एक परिपत्र से पता चला कि 11 सीडब्ल्यूसी में से छह 31 दिसंबर 2023 तक सभी अध्यक्षों और अधिकांश सदस्यों के पद खाली हो गए हैं. ये छह सीडब्ल्यूसी वर्तमान में कार्यवाहक अध्यक्षों के साथ काम कर रहे हैं. सदस्यों के फिलहाल 16 पद खाली है.
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