पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का निधन हो गया है. उनका विवादों से नाता रहा.
Henry Kissinger Dead: हेनरी किसिंजर का नाम आपने सुना है? वो एक अमेरिकी राजनयिक थे. 100 वर्ष की आयु में उनका पिछले दिनों देहान्त हो गया. अमेरिका में उन्हें शीत युद्ध के दौर का सबसे प्रभावशाली राजनयिक माना जाता है, जिन्होंने अमेरिका को चीन के लिए दरवाजा खोलने, सोवियत संघ के साथ हथियार नियंत्रण समझौते करने और वियतनाम युद्ध को समाप्त करने में मदद की, लेकिन आलोचकों द्वारा उनकी मानवाधिकारों को लेकर खूब निंदा भी की गई.
भारत की खिलाफत, पाक की ओर रहा झुकाव
किसिंजर, एक जर्मन मूल के यहूदी शरणार्थी थे, जिनका करियर उन्हें अकादमिक क्षेत्र से कूटनीति की ओर ले गया और जो बाद के वर्षों में विदेश नीति में सक्रिय आवाज बने रहे. 1970 के दशक में जब वह अमेरिका के विदेश मंत्री थे, तो उन्होंने भारत की खिलाफत की. 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का साथ दिया, भारतीयों और भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी भी की थी. न्यूयॉर्क टाइम्स को मिले एक टेप के मुताबिक, उनकी सोच में भारतीयों को लेकर नफरत झलकती थी.
1971 में चीन को भारत के खिलाफ उकसाया था
रूसी मीडिया स्पुतनिक ने बताया था कि 1971 के युद्ध के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के कहने पर किसिंजर ने चीन से अपनी सेना को भारत की सीमा के पास तैनात करने को कहा था. इतना ही नहीं, वह 3 जून 1971 को लाखों बंगाली शरणार्थियों को पनाह देने के लिए भी भारत और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ थे.
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और राज्य सचिव रहे
किसिंजर चीन के साथ अमेरिकी राजनयिक शुरुआत, ऐतिहासिक अमेरिकी-सोवियत हथियार नियंत्रण वार्ता, इज़रायल और उसके अरब पड़ोसियों के बीच विस्तारित संबंधों और उत्तरी वियतनाम के साथ पेरिस शांति समझौते के वास्तुकार थे. कई लोगों ने किसिंजर की प्रतिभा और राजनेता की सराहना की, जबकि दूसरों ने उन्हें विशेष रूप से लैटिन अमेरिका में कम्युनिस्ट विरोधी तानाशाही के समर्थन के लिए युद्ध अपराधी करार दिया. उनके बाद के वर्षों में, कुछ देशों द्वारा उन्हें गिरफ्तार करने या पिछली अमेरिकी विदेश नीति के बारे में पूछताछ करने के प्रयासों के कारण उनकी यात्राएँ सीमित हो गईं.
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अमेरिका और चीन के कूटनीतिक रिश्तों की शुरुआत की
कहा जाता है कि किसिंजर की बदौलत ही अमेरिका और चीन के बीच कूटनीतिक रिश्तों की शुरुआत हुई थी. 1972 में ये पहली बार हुआ, जब कोई अमेरिकी राष्ट्रपति चीन के दौरे पर पहुंचा. वियतनाम और कोरिया में एक-दूसरे के खिलाफ दो जंग लड़ चुके अमेरिका और चीन के लिए यह फैसला काफी अहम था. 1974 में वॉटरगेट घोटाले के बीच अमेरिका में रिपब्लिकन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के इस्तीफे के बाद, वह निक्सन के उत्तराधिकारी, राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड के अधीन राज्य सचिव के रूप में एक राजनयिक ताकत बने रहे.
— भारत एक्सप्रेस