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राष्ट्र का निर्माण पूरी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण से ही होता है- बोले भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन उपेंद्र राय

राष्ट्रीय पूर्वांचल महासंघ के कार्यक्रम में भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन उपेंद्र राय ने सम्मान प्राप्त करने के बाद अपने संबोधन में एक कहानी का जिक्र किया.

भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन, एमडी व एडिटर इन चीफ उपेंद्र राय

Delhi: राष्ट्रीय पूर्वांचल महासंघ द्वारा दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में रविवार को एक सम्मान समारोह आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन, एमडी व एडिटर इन चीफ उपेंद्र राय को सम्मानित किया गया. वहीं भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन उपेंद्र राय ने भोजपुरी में अपना संबोधन शुरू किया और कहा वे पूर्वांचल के लोगों से अक्सर मिलते-जुलते रहते हैं.

उन्होंने कहा, “जिस माटी में हम जन्मे हैं. जब हम जूनियर कक्षा में थे, तो पढ़ाई शुरू करने से पहले एक प्रार्थना करते थे, “वह शक्ति हमें दो दयानिधे ..कर्तव्य मार्ग पर डट दावे जावें…” और उसकी आखिरी लाइन है, “जिस देश-जाति में जन्म लिया बलिदान उसी में हो जावें.” इस अवसर पर उन्होंने एक गांव की कहानी सुनाई जहां लंबे समय से अकाल पड़ा हुआ था.

भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन ने कहा, “एक गांव में लंबे समय से अकाल पड़ा हुआ था, तभी गांव में एक बाबाजी आए और उन्होंने पूरे गांव के लोगों को एकत्र होने को कहा कि वे प्रार्थना करेंगे और सबके सामने बारिश होगी. इसके बाद पूरे गांव के लोग एकत्र हुए और बाबाजी भी मंच पर आए. प्रार्थना की मुद्रा बनाकर बाबाजी ने सभी को संबोधित किया कि- मैंने ये बात कही कि सबके सामने जोरदार बारिश होगी और ये अकाल खत्म होगा, लेकिन आप लोग अपने घरों से छाता तो नहीं लाए. बाबाजी की बात सुन सभी एक-दूसरे का मुंह देखने लगे.”

वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय ने आगे की कहानी बताते हुए कहा, “बाबाजी ने कहा कि मैं बताता हूं कि आप लोग छाता लेकर क्यों नहीं आए. आप लोगों ने मेरे सम्मान में आने का मन तो बना लिया लेकिन इस बात पर भरोसा नहीं था कि प्रार्थना करने से बारिश भी हो सकती है.”

उपेंद्र राय ने आगे कहा, “हम बहुत सारा काम एक-दूसरे का लिहाज करके तो कर लेते हैं लेकिन भरोसे से नहीं और राष्ट्र का निर्माण पूरी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण से ही होता है.”

उन्होंने आगे कहा, “जर्मनी के वैज्ञानिक जो नोबेल लॉरिएट थे, उनके एक सहयोगी उनसे मिलने आए. उनके सहयोगी भी नोबेल विजेता थे और अमेरिका से आए थे. उन्होंने कहा कि मैंने अखबारों में पढ़ा कि इतना पढ़ा-लिखा होने के बाद भी तुम अंधविश्वासी हो गए हो, पीछे घोड़े की नाल लटका रखे हो. इस पर वैज्ञानिक ने कहा- मैं बिल्कुल भरोसा नहीं करता लेकिन देने वाले ने कहा है कि तुम भरोसा करो या न करो… ईश्वर का आशीर्वाद तो इसमें आकर अटकेगा ही.”

– भारत एक्सप्रेस

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