कोरोना के दौर तो सबको याद ही होगा. हम उस दौर को नहीं भूल पाएंगे जब हम सभी ने न सिर्फ मौत को बेहद करीब से देखा बल्कि मौत का सबसे भयानक रूप भी देखा. लेकिन फिर जिंदगी तो लौट आई लेकिन कैसे लौटी और कैसे बनी वैक्सीन? विवेक अग्निहोत्री ने इस फिल्म में ये सब दिखाया है जो हम नहीं जानते.
इस फिल्म की स्टोरी
ये कहानी कोई आम कहानी नहीं है. न कोई प्रेम कहानी, न कोई थ्रिलर, न किसी के डॉन बनने की कहानी, लेकिन ये कहानी बेहद अहम है. हमें जीवन वापस पाने की कहानी. ये कहानी है कोरोना वैक्सीन बनने की कहानी. यह कैसे हुआ, क्या चुनौतियाँ थीं. हमने विदेश से वैक्सीन क्यों नहीं ली. इसके ख़िलाफ़ कौन था? मीडिया की क्या भूमिका थी, सोशल मीडिया ने क्या किया. ये बात आप इस फिल्म में बखूबी देख सकते हैं.
जानिए कैसी है फिल्म
यह कोई शोर मचाने वाली फिल्म नहीं है. यहां दर्शक थिएटर में नहीं नाचते. हीरो 10 गुंडों को नहीं मारता लेकिन फिर भी ये फिल्म आपको छू जाती है क्योंकि हम सब उस दौर को जी चुके हैं. ये फिल्म हर पहलू पर बात करती है और ठीक से करती भी है लेकिन ऐसा भी लगता है कि एक पत्रकार की कहानी को ज्यादा फुटेज दी गई है. इसके बावजूद आप फिल्म को महसूस करते हैं. आइए इससे जुड़ें. आपको कुछ ऐसे सवालों के जवाब मिलेंगे जिनके बारे में आपने सोचा भी नहीं होगा.
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फिल्म की स्टारकास्ट
नाना पाटेकर उस स्तर के अभिनेता हैं जिनका रिव्यू नहीं किया जा सकता. वह किरदार को जीते हैं. यहां भी वह अपने किरदार में इस हद तक परफेक्शन लाते हैं कि उन्हें देखने के बाद समझ आ जाता है कि यह एक्टिंग है जिसे बहुत कम एक्टर ही इस परफेक्शन के साथ कर पाते हैं. पल्लवी जोशी अद्भुत हैं… उनका एक वैज्ञानिक का किरदार आपको उनसे जोड़ता है. वैक्सीन बनने के बाद जब वह मास्क उतारकर सांस लेती है तो आपको भी वह वक्त याद आ जाता है जब आप सांस लेने के लिए संघर्ष कर रहे थे. पत्रकार की भूमिका में राइमा सेन जमी हैं. अनुपम खेर ने छोटे-छोटे किरदारों में भी जान डाल दी है और यही उनकी खासियत है कि वह एक सीन में भी कमाल कर देते हैं.
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