Bharat Express

क्या 2024 में कांग्रेस की नैया पार लगाएंगे भूमिहार ?

राजनीति में जातीय फैक्टर को ना तो इग्नोर किया जा सकता है और ना ही नकारा जा सकता. हां यह जरूर है की जब विचारधारा की बात होती है तो उसमें जातीय समीकरण टूटते नज़र आते हैं.

यूपी कांग्रेस का फ्लैग

UP Politics: राजनीति में हर किसी का एक दौर होता है, देश में कभी कांग्रेस का दौर था तो कभी गैर कांग्रेसवाद की लहर चली और वर्तमान समय में भारतीय जनता पार्टी का दौर चल रहा है. अभी एक दशक पहले तक कांग्रेस देश के सत्ता पर काबिज थी. समय बीता मतदाताओं की सोच और विचारधारा बदली और सत्ता में भारतीय जनता पार्टी आ गई. खैर राजनीति में एक बात तो सभी स्पष्ट रूप से जानते हैं कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर ही जाता है, इसलिए जिधर यूपी के मतदाता घूमते हैं उधर ही सत्ता की लहर घूम जाती है और आखिर घूमे भी क्यों न 80 लोकसभा सीटें भी तो यूपी में ही हैं.

ऐसे में हर राजनैतिक दल यूपी को साधने का भरपूर प्रयास करते हैं, इसी प्रयास में कहीं न कहीं कांग्रेस भी इन दिनों दिखाई पड़ रही है. दरअसल कांग्रेस ने अपने संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पूर्व मंत्री और पांच बार से विधायक रहे अजय राय को यूपी कांग्रेस की कमान सौंपी है. अजय राय को पूर्वांचल में एक दबंग और जुझारू छवि का नेता माना जाता है. अजय राय तीन बार बनारस से लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं वह दो बार तो प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ और एक बार पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं.

अजय राय का कद बड़ा करने के पीछे कांग्रेस का मकसद क्या है?

अगर देखा जाए तो कांग्रेस ने अजय राय को यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर सवर्ण वोटरों के बीच एक बड़ी सेंध लगाने का काम किया है. दरअसल अजय राय भूमिहार जाति के ही नहीं बल्कि आमजन के लिए संघर्ष करने वाले बड़े नेताओं में सुमार हैं और उनको अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने कहीं न कहीं 2024 में पूर्वांचल से लगायत पश्चिमांचल के भूमिहार त्यागी वोटरों के बीच भी अपनी राजनैतिक स्थिति को मजबूत करने का काम किया है.

यूपी के 40 से 42 सीटों पर निर्णायक हैं भूमिहार मतदाता

राजनीति में जातीय फैक्टर को ना तो इग्नोर किया जा सकता है और ना ही नकारा जा सकता. हां यह जरूर है की जब विचारधारा की बात होती है तो उसमें जातीय समीकरण टूटते नज़र आते हैं. उत्तर प्रदेश में अगर भूमिहार मतदाताओं की बात की जाए तो ये यूपी की लगभग 40 से 42 सीटों पर व्यापक प्रभार डालते हैं और 18 से 20 लोकसभा क्षेत्रों में जीतने की स्थिति में भी हैं. कानपुर,अयोध्या, लखनऊ, मोहनलालगंज, बिजनौर, मुरादाबाद, बागपत, संभल, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ, आगरा, फतेहपुर सिकरी, फूलपुर, इलाहाबाद, चंदौली, मिर्जापुर, भदोही, वाराणसी, गाजीपुर, मछलीशहर, जौनपुर, लालगंज, प्रतापगढ़,आजमगढ़,अंबेडकरनगर, बस्ती, संत कबीरनगर, डुमरियागंज, गोरखपुर, कुशीनगर, बांसगांव, देवरिया, सलेमपुर, बलिया, घोसी, लखीमपुर, पीलीभीत, अमरोहा, शाहजहांपुर लोकसभा में भूमिहार जाति के मतदाता चुनाव को प्रभावित करते हैं.

यूपी में क्यों भूमिहारों की संख्या को लेकर है कन्फ्यूजन?

वैसे तो उत्तर प्रदेश में भूमिहार मतदाताओं की कुल आबादी लगभग 3.24 फीसदी के आस पास है, जो किसी भी दल के जीत या हार में काफी निर्णायक भूमिका निभा सकती है लेकिन इस जाति की संख्या को लेकर हमेशा कन्फ्यूजन की स्थिति रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह इस जाति के लोगों द्वारा अलग – अलग टाइटल/सरनेम का प्रयोग रही है.

यूपी में भूमिहार जाति के लोग त्यागी, शर्मा, शुक्ला, मिश्रा, तिवारी, पाण्डेय, कश्यप, वत्स, राय, शाही, त्रिवेदी, सिंह, गिरी, कौशिक, कुमार, सांडिल्य, द्विवेदी, सिन्हा, चौधरी, गौतम, ठाकुर आदि सरनेम लिखते हैं जिसकी वजह से इनके संख्या बल मात्र एक दो सरनेम के आधार पर कमतर आंक लेते हैं.

यूपी में भूमिहार किसके साथ

आज़ादी के बाद के दिनों में भूमिहार मतदाता कांग्रेस के कोर वोटर माने जाते थे लेकिन विकास पुरूष कहे जाने वाले कल्पनाथ राय की मृत्यु के बाद से ही भूमिहार मतदाता कांग्रेस धीरे – धीरे कांग्रेस से दूर और भाजपा के करीब होते चले गये तो वहीं कुछ फीसदी भूमिहार मतदाताओं ने अपने लिए अलग राजनीतिक विकल्पों का भी चयन किया. वर्तमान समय में भूमिहार मतदाता अपने जाति के नेताओं के साथ मजबूती से लामबन्द नज़र आ रहे हैं और पार्टी के झंडो को छोड़कर सम्बन्धो के आधार पर मतदान करने की बात कह रहे हैं.

सभी राजनैतिक दलों ने किया है भूमिहार मतदाताओं को साधने का प्रयास

भूमिहारों की राजनैतिक महत्ता को देखते हुए समय के साथ सभी राजनैतिक दलों ने इन्हे अपने पाले में करने का प्रयास किया है. भूमिहार मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने के लिए एक दशक पहले भाजपा ने मास्टर प्लान चलते हुए एक साथ यूपी, बिहार और झारखण्ड में भूमिहार जाति से ताल्लुक रखने वाले सूर्य प्रताप शाही, सीपी ठाकुर, रविन्द्र राय को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था.

इस बार कांग्रेस भी भाजपा के ही पुराने प्लान को लागू करके भूमिहार मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की कवायत कर रही है और कांग्रेस ने भी इसी लिए यूपी, बिहार और झारखण्ड में भूमिहार जाति से ताल्लुक रखने वाले अजय राय, अखिलेश प्रसाद सिंह और राजेश ठाकुर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.

वहीं अगर राष्ट्रीय लोकदल की बात की जाए तो रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने कभी भाजपा के शीर्ष नेताओं में सुमार रहे और भाजपा के लिए जमीन तलाशने वाले भारतीय जनता युवा मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रामाशीष राय को अपने पार्टी में यूपी की कमान सौंप कर अपने पाले में करने का प्रयास किया है.

तो वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने सुदूर कर्नाटक में शिक्षा जगत में अपनी अलग पहचान रखने वाले राजीव राय को राष्ट्रीय सचिव और प्रवक्ता बनाकर, जयराम पाण्डेय को समय – समय पर सम्मान देकर भूमिहार समाज को अपने पाले में करने का प्रयास किया है.

वर्तमान समय में सत्ताधारी पार्टी भाजपा की बात की जाए तो भाजपा ने भी भूमिहार मतदाताओं को अपनी ओर करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है. एकतरफ जहां मनोज सिन्हा के चुनाव हारने के बाद से पार्टी ने पूर्वांचल में भूमिहार मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ को मजबूत बनाने के लिए पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही को यूपी कैबिनेट में जगह दी और पूर्व ब्यूरोक्रेट ए के शर्मा को यूपी सरकार में दो – दो विभागों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी तो वहीं दूसरी तरफ मनोज सिन्हा को भी जम्मू कश्मीर का राज्यपाल बनाकर पूर्वांचल में अपनी स्थिति को मजबूत करने का काम किया है. वहीं बहुजन समाज पार्टी घोसी सांसद अतुल कुमार सिंह उर्फ अतुल राय के जरिए भूमिहार मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की जुगत में है.

– भारत एक्सप्रेस

Also Read