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‘गजवा-ए-हिन्द’ का मंसूबा नापाक, दारुल उलूम देवबंद के फतवे की ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज ने की कड़ी निंदा

देवबंद की इस्लामिक शिक्षा के केंद्र दारुल उलूम देवबंद ने गजवा-ए-हिन्द को मान्यता देने वाला फतवा जारी किया था, जिस पर भारतीय मुस्लिमों के संगठन ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज ने सख्‍त ऐतराज जताया है.

India Muslim Islam

फोटो— भारतीय मुस्लिम समाज

Darul Uloom & Deoband fatwa: हिंदुस्‍तान में ‘गजवा-ए-हिन्द’ का मंसूबा कुछ अराजक तत्‍व अक्‍सर पाले रहते हैं. एक इस्‍लामिक संस्‍था दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर भी ऐसा ही फतवा देखा गया, जिसकी अब देशभर में भर्त्सना की जा रही है. ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज ने भी उसकी निंदा की है.

ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्‍ट्रीय संयोजक मुहम्‍मद युनूस ने कहा कि कुछ हिंसक अंतरराष्‍ट्रीय गैर-राज्य अभिनेताओं और विदेश समर्थित सीमा पार आतंकवादी समूहों द्वारा भारत के खिलाफ गजवा-ए-हिन्द की झूठी कहानी को उजागर करने और बदनाम करने का प्रयास किया गया है. यह मानवता के विरुद्ध स्‍पष्‍ट रूप से अनैतिक और अधार्मिक युद्ध से जुड़ा एक निरर्थक नारा है.

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ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के पदाधिकारियों ने कहा कि ‘गजवा-ए-हिन्द’ जिसका न तो कुरआन में है और न ही किसी मुस्तनद हदीस में इसका जिक्र है. इससे संदेह पैदा हो गया है कि हदीस साहित्य में गजवातुल हिंद का संदर्भ एक संभावित मनगढ़ंत कहानी है. देवबंद जैसे मशहूर मदरसे की वेबसाइट पर 2008 से उपलēध इस प्रकार की राष्‍ट्रविरोधी विचारधारा की ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज निन्दा करता है और इसको वेबसाइट से हटाने के लिए भी कहता है.

बता दें कि यूपी में दारुल उलूम देवबंद एक इस्लामिक संस्था है, जिसका दावा है कि वे मुस्लिम समाज के हितों के लिए कार्य करते हैं, हालांकि इस संस्था की अधिकारिक वेबसाइट पर पसमांदा मुस्लिम समाज की समाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, राजनीतिक एवं चिकित्सा संबंधी किसी मुद्दे को कोई जगह नहीं मिलती है. देवबंद ने कभी आर्टिकल 341 पर कोई जलसा नहीं किया. देवबंद, इमारत-ए-शरिया, जमात, जमात-ए-इस्लामी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आदि में पसमांदा मुस्लिम समाज की हिस्सेदारी को शामिल नहीं करती.

ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के नेता मुहम्‍मद युनूस ने दारुल उलूम देवबंद के बारे में कहा कि ये मजहब के नाम पर लाखों लोगों का जलसा-जुलूस करते रहते हैं, परंतु पसमांदा मुस्लिम समाज की बेहतरी के लिए कोई बात नहीं करते हैं. इससे यह प्रतीत होता है कि यह संस्था मुस्लिम समाज के कुछ विशेष वर्गों तक ही सीमित है. इसके अलावा यह भारत में साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले कार्यों में सलग्न है.’

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