Bharat Express

PM मोदी ने रघुराज मंदिर में की पूजा-अर्चना, बोले- मेरा सौभाग्य है मुझे प्रभु श्रीराम के दर्शन का अवसर मिला

PM Narendra Modi in Chitrakoot: पीएम मोदी ने कहा कि, “मेरा सौभाग्य है, आज पूरे दिन मुझे अलग-अलग मंदिरों में प्रभु श्रीराम के दर्शन का अवसर मिला और संतों का आशीर्वाद भी मिला. विशेषकर संत रामभद्राचार्य जी का स्नेह जो मुझे मिलता है वह अभिभूत कर देता है.”

पीएम नरेंद्र मोदी (फोटो ani)

PM Narendra Modi: मध्यप्रदेश चुनाव के मद्देनजर पीएम मोदी ने आज चित्रकूट का दौरा किया. इस दौरान उन्होंने रघुवीर मंदिर पहुंचकर पूजा-अर्चना की. इसके अलावा पीएम ने चित्रकूट में तुलसी पीठ के जगद्गुरु रामानंदाचार्य से मुलाकात की.पीएम मोदी ने यहां एक विशाल जनसभा को संबोधित किया. प्रधानमंत्री ने स्वर्गीय अरविंद भाई मफतलाल के शताब्दी जन्म वर्ष समारोह में कहा कि आज जानकीकुंड चिकित्सालय के नए विंग का लोकार्पण हुआ है, इससे लाखों मरीजों को नया जीवन मिलेगा। आने वाले समय में सद्गुरू मेडिसिटी में गरीबों की सेवा के इस अनुष्ठान को नया विस्तार मिलेगा.

पीएम मोदी ने आगे कहा आज इस अवसर पर अरविंद भाई मफतलाल की स्मृति में भारत सरकार ने विशेष स्टैंप भी रिलीज किया है. ये पल अपने आप में हम सबके लिए गौरव का पल है, संतोष का पल है. मैं आप सबको इसके लिए बधाई देता हूं.

‘मेरा सौभाग्य है, प्रभु श्रीराम के दर्शन का अवसर मिला’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चित्रकूट के बारे में कहा गया है-  ‘कामद भे गिरि राम प्रसादा. अवलोकत अपहरत विषादा’ अर्थात चित्रकूट के पर्वत, कामदगिरि, भगवान राम के आशीर्वाद से सारे कष्टों और परेशानियों को हरने वाले हैं. चित्रकूट की ये महिमा यहां के संतों और ऋषियों के माध्यम से ही अक्षुण्ण बनी हुई है. पूज्य रणछोड़दास जी ऐसे ही संत थे. उनके निष्काम कर्मयोग ने मुझे हमेशा प्रेरित किया है. उन्होंने आगे कहा, “मेरा सौभाग्य है, आज पूरे दिन मुझे अलग-अलग मंदिरों में प्रभु श्रीराम के दर्शन का अवसर मिला और संतों का आशीर्वाद भी मिला. विशेषकर संत रामभद्राचार्य जी का स्नेह जो मुझे मिलता है वह अभिभूत कर देता है.”

‘हजारों सालों में कितनी भाषाएं आईं और गईं’

पीएम ने आगे कहा, “दुनिया में इन हजारों वर्षों में कितनी ही भाषाएं आईं और चली गईं. नई भाषाओं ने पुरानी भाषाओं की जगह ले ली. लेकिन हमारी संस्कृति आज भी उतनी ही अक्षुण्ण और अटल है. संस्कृ​त समय के साथ परिष्कृत तो हुई लेकिन प्रदूषित नहीं हुई. उन्होंने आगे कहा- दूसरे देश के लोग मातृभाषा जाने तो ये लोग प्रशंसा करेंगे लेकिन संस्कृत भाषा जानने को ये पिछड़ेपन की निशानी मानते हैं. इस मानसिकता के लोग पिछले एक हजार साल से हारते आ रहे हैं और आगे भी कामयाब नहीं होंगे.

– भारत एक्सप्रेस

 

Bharat Express Live

Also Read

Latest